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________________ १५२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास . श्री सुखलालऋषिजी आचार्य श्री संघराजजी के पट्ट पर श्री सुखलालऋषिजी विराजित हुए। आपका जन्म वि० सं० १७२७ में जैसलमेर के निकटस्थ आसणीकोट ग्रामवासी सकलेजा गोत्रीय ओसवाल श्री देवीदासजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती रम्भाबाई था। वि० सं० १७३९ में श्री संघराजजी के सानिध्य में आप दीक्षित हुए। वि०सं० १७५६ में अहमदाबाद में आप आचार्य पद पर विराजित हए। वि०सं० १७६३ का चातुर्मास आपका अन्तिम चातुर्मास था। वि०सं० १७६३ की आश्विन कृष्णा की एकादशी को आपका स्वर्गवास हो गया । श्री भागचन्द्रऋषिजी आप आचार्य श्री सुखलालजी के पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए। आपकी जन्म-तिथि व आपके माता-पिता का नाम उपलब्ध नहीं होता है। हाँ! इतना ज्ञात होता है कि आप भुज (कच्छ) निवासी श्री सुखमल्लजी के भानजे थे । वि०सं० १७६० की मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को आप अपनी भाभी श्रीमती तेजबाई के साथ दीक्षित हुए। वि०सं० १७६४ में भुज में आप संघ के आचार्य बने और ४१ वर्ष तक आचार्य पद को विभूषित करते रहे। वि०सं० १८०५ में आप स्वर्गस्थ हुए। श्री बालचन्द्रऋषिजी आचार्य श्री भागचन्द्र ऋषिजी के पश्चात् आचार्य के पट्ट पर श्री बालचन्द्रऋषिजी आसीन हुए। आप फलोदी (मारवाड़) के छाजेड़ गोत्रीय ओसवाल थे। वि०सं० १८०५ में सांचेर में आप आचार्य घोषित किये गये। वि०सं० १८२९ में स्वर्गस्थ हुए। आपकी जन्म- तिथि, दीक्षा-तिथि व माता-पिता का नाम उपलब्ध नहीं होता है। श्री माणकचन्द्रऋषिजी. आपका जन्म मारवाड़ के पाली निकटस्थ दरियापुर ग्राम के निवासी कटारिया गोत्रीय श्री रामचन्द्रजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का श्रीमती जीवाबाई था। वि० सं० १८१५ में आचार्य श्री बालचन्द्रजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। जामनगर में वि०सं० १८२९ में आप संघ के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये। २५ वर्ष तक आचार्य पद को विभूषित करते हुए वि०सं० १८५४ में आप स्वर्गस्थ हुए। श्री मूलचन्दऋषिजी आचार्य श्री माणकचन्द्रजी के बाद आप संघ के आचार्य बने। आपका जन्म जालौर निवासी सियाल गोत्रीय ओसवाल श्री दीपचन्द्रजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती अजबा भाई था। वि० सं० १८४९, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को आपने आचार्य श्री माणकचन्द्रजी के सानिध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की। वि०सं० १८५४ म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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