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________________ १५० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास गुजराती लोकागच्छ के नानीपक्ष के आचार्यों का संक्षिप्त परिचय* श्री कुंवरऋषिजी आपका जन्म कहाँ हुआ, आपके माता-पिता का नाम क्या था आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मात्र इतना ज्ञात होता है कि आप अपने माता-पिता और सात व्यक्तियों के साथ वि०सं० १६०२ में जीवाजी ऋषि के सानिध्य में दीक्षित हुए थे और बालापुर में आपको आचार्य पद पर विभूषित किया गया था। श्री श्रीमल्लऋषिजी आचार्य कुंवरजी ऋषि के पट्ट पर श्री मल्लजी ऋषि विराजित हुए। आपका जन्म अहमदाबाद में हुआ । आपके माता-पिता का नाम श्रीमती कुंवरी देवी और श्री शाह थावर पोरवाल था। आप वि०सं० १६०६ की मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी के दिन अहमदाबाद में जीवाऋषिजी के पास दीक्षित हुए । वि०सं० १६२९ ज्येष्ठ वदि पंचमी को आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए । 'जैन आचार्य चरितावली' में आचार्य हस्तीमलजी ने लिखा है कि आप एक प्रभावशाली आचार्य थे । आपके उपदेश से प्रभावित होकर लोगों ने जैनधर्म ग्रहण किया और अपने गले से कंठियाँ उतार-उतार कर कएँ में गिरा दी । आज भी वह कंठियाँ कुआँ के नाम से प्रसिद्ध है। तत्पश्चात् कांठा की ओर विहार कर आप मोरबी पधारे और वहाँ श्रीपाल सेठ आदि ४००० व्यक्तियों को प्रतिबोध देकर श्रावक बनाया । इसके अतिरिक्त कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। श्री रत्नसिंहऋषिजी श्री मल्लजीऋषि की पाट पर श्री रत्नसिंहऋषिजी बैठे । आपकी जन्म-तिथि उपलब्ध नहीं है। आप हालार प्रान्त के नवानगर के निवासी सोल्हाणी गोत्रीय श्रीमाल सूरशाह के पुत्र थे । वि०सं० १६४८ में ९ व्यक्तियों के साथ आप अहमदाबाद में दीक्षित हुए । वि०सं०१६५४ की ज्येष्ठ कृष्णा सप्तमी को आपको आचार्य पदवी से विभूषित किया गया । इसके अतिरिक्त कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है। श्री केशवऋषिजी आपका जन्म मारवाड़ के दुनाड़ा ग्राम में हुआ । आपके पिता के नाम को लेकर मत वैभिन्न्यता है । आचार्य हस्तीमलजी के अनुसार आपके पिता का नाम श्री श्रीमाल साहबजी था, किन्तु प्रभुवीर पट्टावली के अनुसार विजयराज ओसवाल था। आपकी माता का नाम जयवन्त देवी था। वि०सं० १६७६ फाल्गुन कृष्णा पंचमी को सात व्यक्तियों के साथ आचार्य रत्नसिंहजी के पास आपने दीक्षा ग्रहण की । वि०सं० * संक्षिप्त परिचय आचार्य हस्तीमलजी म.सा. द्वारा लिखित 'जैन आचार्य चरितावली' पर आधारित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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