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________________ १४९ लोकागच्छ और उसकी परम्परा हुये और वि०सं० १७८८ फाल्गुन सुदि द्वादशी को आप समाधिमरण को प्राप्त हुये। श्री. जगरूपजी- आपकी दीक्षा वि० सं० १७८५ में हुई। वि०सं० १७८८ फाल्गुन सुदि तृतीया को आप गादीपति बने। वि०सं० १७९८ में आप ११ दिन के संथारे के साथ स्वर्गस्थ हुये। श्री जगजीवनजी- वि० सं० १७८९ में आप दीक्षित हुये। वि० सं० १७९८ में श्री जगरूपजी के स्वर्गवास के पश्चात् वि०सं० १७९९ में आप गादीपति बने। वि०सं० १८१२ में ६ दिन के संथारे के साथ आपने स्वर्ग के लिए प्रयाण किया । श्री मेधराजजी- वि०सं० १७९९ में आपकी दीक्षा हुई। वि०सं० १७९९ में आप गादीपति बने और वि०सं० १८१२ में संथारा पूर्वक आपका महाप्रयाण हुआ। 'पट्टावली प्रबन्ध संग्रह' का यह उल्लेख विचारणीय है। क्योंकि जगजीवनजी और मेधराजजी दोनों का वि० सं० १७९९ में गादीपति होना और वि०सं० १८१२ में स्वर्गगमन होना विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता है। यहाँ दो बाते सामने आती हैं- १. मेधराजजी जगजीवनजी से अलग हुये हों या २. पुस्तक छपाई में गलती हो। श्री. सोमचंदजी-वि० सं० १८३९ में फाल्गुन वदि षष्ठी को आप गादीपति बने। वि०सं० १८५५ में ७ दिन के संथारे के साथ आपका स्वर्गगमन हुआ। श्री हर्षचन्दजी- वि०सं० १८५५ फाल्गुन सुदि षष्ठी को आप गादी पर विराजित हुये। वि०सं० १८६९ भाद्रपद में तीन दिन संथारा पूर्ण करके आप स्वर्गस्थ हुये। इसके अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। श्री. जयचंदजी ऋषि-आपके विषय कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। मात्र इतना ज्ञात होता है कि श्री हर्षचन्दजी के पश्चात् आप गादीपति बने और वि०सं० १९२२ वैशाख सुदि चतुर्दशी को आपका समाधिमरण हुआ। श्री कल्याणचन्द्रजी- आपका जन्म वि०सं० १८९० चैत्र सुदि त्रयोदशी को हुआ। वि०सं० १९१० में आप दीक्षित हुये। वि० सं० १९१८ में गादी पर विराजित हुये। वि०सं० १९५६ श्रावण वदि दशमी को दिन ४ बजे आपने स्वर्ग के लिए महाप्रयाण किया। श्री खबचन्दजी- श्री कल्याणचन्द्रजी के पश्चात् श्री खूबचन्दजी पट्ट पर विराजित हुये। वि० सं० १९८२ मार्गशीर्ष सुदि नवमी को बड़ोदरा में आपका स्वर्गवास हो गया। इसके पश्चात् इस परम्परा के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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