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________________ विभिन्न आचार्यों और मुनियों के अभिनन्दन और स्मृति ग्रन्थ रहे हैं। इन ग्रन्थों में अपनी-अपनी परम्परा के पूर्वज आचार्यों और श्रुतधरों के उल्लेख उपलब्ध हो जाते हैं, किन्तु दुर्भाग्य यही रहा कि अनेक स्थानकवासी मुनियों एवं आचार्यों ने अपनी-अपनी परम्परा के इतिहास को तो प्रस्तुत करने का प्रयास तो किया, किन्तु समस्त स्थानकवासी परम्परा के इतिहास को प्रकाशित करने में किसी की भी विशेष रूचि नहीं रहीं। इन विभिन्न ग्रन्थों में जो अपनी-अपनी परम्परा अथवा पूर्वज आचार्यों के विवरण दिये गये हैं उनमें अपने पूर्वज आचार्यों को अधिक महिमामण्डित करने की अपेक्षा से उनके जीवन चरित के साथ अनेक प्रकार की चामत्कारिक घटनायें जोड़ दी गयी हैं। चूंकि पार्श्वनाथ विद्यापीठ एक शोधप्रधान संस्था है, अत: यह आवश्यक था कि उन ग्रन्थों में उपलब्ध सामग्री को भी उनकी सम्पूर्ण समीक्षा के बाद ही ग्रहण किया जाये। फिर भी जिन परम्पराओं के इतिहास के लेखन में जो-जो ग्रन्थ हमें विशेष सहायभूत रहे उनका उल्लेख करना आवश्यक है। जहाँ तक पंजाब की परम्परा के इतिहास के लेखन का प्रश्न है हमारे इस कार्य के लिए परमपूज्य श्री सुमनमुनिजी म.सा० की ‘साधना का महायात्री' नामक ग्रन्थ अधिक सहायक रहा। यद्यपि अन्यत्र से भी जो सूचनायें हमें उपलब्ध हो सकी उन्हें समाहित करने का प्रयत्न किया है । गुजरात के स्थानकवासी सम्प्रदाय की परम्परा के इतिहास के लेखन में हमें अधिकांश सूचनायें 'आछे अणगार अमारा' और 'मुनि श्री रूपचन्दजी अभिनन्दन ग्रन्थ' (रूपांजली) से प्राप्त हुई। इस सन्दर्भ में पूज्य श्री भास्करमुनिजी का भी सहयोग प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त गोंडल सम्प्रदाय का वंश वृक्ष जो जैन भवन, बुलानाला (वाराणसी) से प्राप्त हुआ वह भी हमारा आधार रहा। लवजी ऋषि की परम्परा को जानने का मूलस्रोत मुनि श्री मोतीऋषिजी द्वारा लिखित 'ऋषि सम्प्रदाय का इतिहास' आधारभूत ग्रन्थ माना जा सकता है। इसी क्रम में धर्मदासजी महाराज की परम्परा और विशेष रूप से मालवा और राजस्थान में विचरण करनेवाली आचार्य रामचन्द्रजी की परम्परा के इतिहास में हमें पूज्य श्री उमेशमुनिजी की कृति 'श्रीमद् धर्मदासजी म० की मालव शिष्य परम्परायें' उपजीव्य रही हैं। इसी प्रकार पूज्य रघुनाथजी, पूज्य जयमल्लजी और पूज्य कुशलोजी की परम्पराओं के इतिहास में हमें 'उपाध्याय पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ', 'जैन आचार्य चरितवाली' और पं० दुःखमोचन की 'रत्नवंश के धर्माचार्य' आदि ग्रन्थ सहायक रहे। हरजी स्वामी की परम्परा (कोटा सम्प्रदाय) के लेखन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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