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________________ आर्य सुधर्मा से लोकाशाह तक ८३ आर्य इन्द्रदिन ___कल्पसूत्र स्थविरावली में आर्य सुस्थित के पश्चात् आर्य इन्द्रदिन्न का नाम मिलता है, किन्तु वाचकवंश की परम्परा तथा युग प्रधान आचार्य परम्परा में इनका उल्लेख नहीं है। कल्पसूत्र के निर्देश के अनुसार आर्य इन्द्रदिन्न काश्यप गोत्रीय थे। इसके अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इन्होंने वी०नि०सं० ३३९ में आचार्य पद ग्रहण किया था। इनके गुरुभाई आर्य प्रियग्रन्थ मंत्रवादी प्रभावक श्रमण थे। आर्य दिन आर्य दिन्न गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके सम्बन्ध में भी विशेष कोई सूचना उपलब्ध नहीं होती है। कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आर्य दिन के दो शिष्य थेमाढ़र गोत्रीय आर्य शान्तिसेन और कौशिक गोत्रीय जाति, स्मृति आदि ज्ञान के धारक आर्य सिंहगिरि। इनमें माढ़र गोत्रीय आर्य शान्तिसेन से कोटिकगण की पूर्व उल्लेखित उच्चानागरी शाखा निकली। आर्य शान्तिसेन के आर्य श्रेणिक, आर्य कुबेर, आर्य तापस और स्थविर आर्य ऋषिपालित ये चार शिष्य थे। इनमें आर्य श्रेणिक से आर्य श्रेणिका शाखा निकली, आर्य तापस से आर्य तापसी शाखा निकली, आर्य कबेर से आर्य कुबेरा शाखा निकली और आर्य ऋषिपालित से ऋषिपालिता शाखा निकली। 'कल्पसूत्र' स्थविरावली में इन शाखाओं की अग्रिम परम्परा के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं दी गयी है। आर्य दिन के दूसरे शिष्य कौशिक गोत्रीय आर्य सिंहगिरि के भी चार शिष्य थे- स्थविर धनगिरि, स्थविर आर्य वज्र, स्थविर आर्य शमित और स्थविर आर्य अर्हदिन्न । इनमें आर्य वज्र से कोटिकगण की पूर्व उल्लेखित वज्री शाखा निर्गत हई और गौतम गोत्रीय आर्य शमित से ब्रह्मदीपिका शाखा अस्तित्त्व में आयी। हमारी दृष्टि में कोटिकगण का ब्रह्मलिप्तिक कुल ही संभवत: ब्रह्मदीपिका शाखा में परिवर्तित हुआ है। उपरोक्त विवरण के पश्चात् 'कल्पसूत्र' स्थविरावली आर्य वज्र की परम्परा का उल्लेख करती है जबकि वाचकवंश परम्परा आर्य सहस्ति के पश्चात आर्य बलिस्सह, आर्य समुद्र, आर्य मंगु, आर्य धर्म और आर्य भद्रगुप्त का उल्लेख करती है। 'कल्पसूत्र' स्थविरावली आर्य सुस्थित के पश्चात् आर्य इन्द्रदिन, आर्य दिन और आर्य सिंहगिरि का उल्लेख करती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आर्य सुहस्ति के पश्चात् 'नन्दीसूत्र' की वाचकवंश परम्परा और 'कल्पसूत्र' स्थविरावली की परम्परा में अन्तर आ गया था। सम्भावना यह लगती है कि आर्य महागिरि की परम्परा वाचकवंश के रूप में प्रस्तुत की गयी और आर्य सुस्थित की परम्परा 'कल्पसूत्र' स्थविरावली के रूप में प्रस्तुत की गयी है। वाचक वंश की परम्परा के उपरोक्त आचार्यों के उल्लेख हमें नियुक्ति आदि में भी उपलब्ध होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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