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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास कृष्ण सखा । भारद्वाज गोत्रीय स्थविर भद्रयश से उडुवाडिय गण (ऋतु वाटिक गण) निकला । इसगण से चार शाखायें और तीन कुल निकले । चार शाखाओं के नाम हैंचम्पार्जिका, भद्रार्जिका, काकन्दिका और मेखलार्जिका । तीन कुल है भद्रगोप्तिक, यशोभद्रीय, भद्रयशिक ।
कुण्डलि गोत्रीय स्थविर कामर्द्धि से वेषवाटिक गण निकाला जिसकी चार शाखायें और चार कुल हुये। चार शाखाओं के नाम है।- श्रावस्तिका, राजपालिका, अन्तरंजिका और क्षेमलीया । कुल के नाम हैं- गणिक मेधिक, कामर्द्धिक और इंद्रपुरक। वासिष्ठ गोत्रीय काकन्दक स्थविर ऋषिगुप्त से मानव गण निकला। इसकी भी चार शाखायें और तीन कुल हुये। शाखाओं के नाम हैं- काश्यवर्जिका, गौतमीया (गोमर्जिक) वशिष्ठीया और सौराष्ट्रीका । कुल के नाम हैं- ऋषिगोत्रक, ऋषिदत्तिक और अभिजयन्त ।
व्याध्रापत्य गोत्रीय कोटिक-काकन्दक सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध से कोटिकगण निकला । इस गण से चार शाखायें निकली- उच्चनागरिका, विद्याधरी, वज्री और मध्यमिका। जो चार कुल इस गण से निकले उनके नाम हैं- ब्रह्मलिप्तक, वत्सलिप्तक, वाणिज्य और प्रश्नवाहन। यहाँ हमें ऐसा लगता है कि आर्य महागिरि की कठोर और अचेल आचार परम्परा के कारण उनकी परम्परा स्वतंत्र रूप से चली, किन्तु चिरकालिक नहीं रही। दूसरी ओर आर्य सुहस्ति की परम्परा चिरकालिक और अधिक मान्य रही क्योंकि वर्तमान में भी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा अपने को कोटिकगण और वज्री शाखा का ही मानती हैं। अन्य सभी गण, शाखाएँ और कुल कालक्रम में नामशेष हो गये। सुस्थित और सुप्रतिबद्ध
आर्य सुस्थित और सुप्रतिबद्ध दोनों सहोदर थे। इनका जन्म काकन्दी नगरी के व्याध्रापत्य गोत्रीय राजकुल में हुआ था। हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार कलिङ्गाधिपति महामेधवाहन खारवेल ने कुमारगिरि पर्वत पर जो आगमवाचना करायी थी, उसमें आर्य सुस्थित और आर्य सुप्रतिबुद्ध उपस्थित थे। आर्य सुस्थित का जन्म वी०नि० सं० २४३ में हुआ। ३१ वर्ष तक गृहस्थ पर्याय में रहे, तत्पश्चात् वी० नि० सं० २७४ में आर्य सुहस्ति के पास दीक्षा ग्रहण की। आर्य सुहस्ति के प्रमुख शिष्यों में आपका स्थान पाँचवां था। १७ वर्ष सामान्य मुनि के रूप में रहे और वी०नि० सं० २९१ में आचार्य पद को सुशोभित करने के पश्चात् वी०नि०सं० ३३९ में स्वर्गवासी हुये। ग्रन्थों में आर्य सुस्थित के ही सम्बन्ध में इतनी ही जानकारी ही उपलब्ध होती है। आर्य सुस्थित के पाँच निम्न शिष्य थे- आर्य इन्द्रदिन्न, आर्य प्रियग्रन्थ, आर्य विद्याधर गोपाल, आर्य ऋषिदत्त और आर्य अर्हदत्त। आर्य सुस्थित के द्वितीय शिष्य स्थविर प्रियग्रन्थ से कोटिक गण की विद्याधरी शाखा निकली । इसी प्रकार विद्याधर गोपाल से विद्याधारी गोपाल शाखा निकली । कोटिकगण की अन्य शाखायें और कुल भी आर्य सुस्थित के ही विभिन्न शिष्य-प्रशिष्यों से निर्गत हुये हैं।
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