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वज्जालग्ग
३१. *प्राकृत-काव्य को नमस्कार है, जिन्होंने प्राकृत-काव्य की रचना की है उन्हें नमस्कार है। जो पढ़ कर उन्हें जान लेते हैं (समझ लेते हैं) उन्हें भी हम प्रणाम करते हैं ।। १३ ॥
४-सज्जणवज्जा (सज्जनपद्धति) ३२. मन्थन से चन्द्रमा, मन्थन से कल्पवृक्ष और मन्थन से ही लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई है। तो फिर बताओ, हम नहीं जानते कि सज्जन कहाँ से उत्पन्न हुआ? (अर्थात् उसे भी मन्थन से ही उत्पन्न होना चाहिए) ॥ १॥
३३. विशुद्ध-स्वभाव सज्जन दुर्जन-द्वारा लांछित (मलिन) किये जाने पर भी, वैसे ही अधिक निर्मल हो जाता है, जैसे छार से दर्पण ॥२॥
३४. सज्जन क्रोध ही नहीं करता है, यदि करता है तो अमंगल नहीं सोचता, यदि सोचता है तो कहता नहीं और यदि कहता है तो लज्जित हो जाता है ॥ ३॥
३५. दृढ़ रोष से कलुषित होने पर भी सज्जन के मुख से अप्रिय वचन कहां से निकल सकते हैं ? चन्द्रमा को किरणें राहु के मुख में भी अमृत ही गिराती हैं (टपकाती हैं)॥ ४ ॥
३६. विधाता ने यह अच्छा ही किया जो संसार में सुजनों की रचना कर दो। वे देखे जाने पर दुःख हर लेते हैं और बोलते समय सभी सुख प्रदान करते हैं ॥ ५ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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