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________________ वज्जालग्ग १. सर्वज्ञ जिन के मुखकमल में बसने वाली श्रुतदेवी (सरस्वती) को प्रणाम कर धर्म, अर्थ और काम से युक्त श्रुतज्ञान रूपी सुभाषित कहूँगा ( अथवा सज्जनों के लिए सूक्तियाँ कहूँगा ) ॥ १ ॥ २. जो अमृततुल्य प्राकृत काव्य को पढ़ना-सुनना नहीं जानते वे काम सम्बन्धी तत्त्वचर्चा करते हुए लज्जित क्यों नहीं होते ? ॥ २ ॥ ३. * विविध कवियों द्वारा रची हुई गाथाओं में से श्रेष्ठ गाथा समूह का चयन कर निश्चय हो विधि पूर्वक 'जगत वल्लभ' वज्जालग्ग की रचना की गई है || ३ || ४. जहाँ एक प्रस्ताव (प्रसङ्ग) में बहुत सी गाथायें पढ़ी ( कही) जाती हैं, वह वज्जालग्ग है । पद्धति को वज्जा कहा गया है ॥ ४॥ ५. जो इस वज्जालग्ग को उचित अवसर पर सदैव पढ़ता है, वह प्राकृत काव्य का कवि और यशस्वी होता है ॥ ५ ॥ १ - सोयारवज्जा ( श्रोतृप द्वति) ६. काव्य-रचना कष्ट से होती है, (काव्य-रचना ) हो जाने पर उसे सुनाना कष्टप्रद होता है और जब सुनाया जाता है, तब सुनने वाले भी कठिनाई से मिलते हैं ॥ १ ॥ * विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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