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________________ आभार मैंने कई वर्ष पूर्व प्राकृत ग्रन्थ परिषत् द्वारा प्रकाशित वज्जालग्ग का अवलोकन किया था । उसकी अंग्रेजी भूमिका में सम्पादक प्रो० माधव वासुदेव पटवर्धन ने बहुत सी गाथाओं की व्याख्या करने में असमर्थता प्रकट की थी और अपने पाठकों से उनका अर्थ खोजने का आग्रह किया था। उसी समय मेरे मन में वज्जालग्ग की नई व्याख्या करने का विचार उत्पन्न हुआ था, जिसके फलस्वरूप यह पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है । व्याख्या का कार्य १९७८ ई० में ही पूर्ण हो गया था । परिशिष्ट ख की रचना १९७९ ई० में हुई थी। उसी वर्ष नवम्बर में डॉ. हरिहर सिंह ने उसे धारावाहिक रूप से 'श्रमण' में प्रकाशित करना प्रारंभ कर दिया था। इसी बीच सौभाग्य से डॉ० सागरमल जैन ने पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के निदेशक-पद को सुशोभित किया। उन्होंने परिशिष्ट ख को श्रमण के अंकों में इतस्ततः प्रकाशित करने की अपेक्षा एक पुस्तक का रूप देना अधिक उपयुक्त समझा और फिर उसके साथ हिन्दी अनुवाद सहित सम्पूर्ण वज्जालग्ग के प्रकाशन की योजना बनी । इस ग्रन्थ का आधार प्राकृत ग्रन्थ परिषत् द्वारा प्रकाशित वज्जालग्ग है । जहाँ कहीं टीका या अंग्रेजी अनुवाद की चर्चा हुई है। वहाँ रत्नदेव की संस्कृत टीका और प्रो० पटवर्धनकृत अंग्रेजी अनुवाद से अभिप्राय समझना चाहिए । अधिकतर अंग्रेजी अनुवाद के आलोच्य अंशों को उद्धृत न कर उनका हिन्दी अनुवाद या सारांशमात्र रख दिया गया है । ऐसे स्थलों पर अंग्रेजी अनुवाद की शब्दावली देखने के लिए पाठकों को प्राकृत ग्रन्थ परिषत् द्वारा प्रकाशित वज्जालग्ग की शरण लेनी पड़ेगी। प्राकृत ग्रन्थ परिषत् ने मुझे वज्जालग्ग के मूल पाठ का उपयोग करने की अनुमति दी है । अतः उसका आभारी हूँ। मूल प्राकृत पाठ और संस्कृत छाया प्राकृत ग्रन्थ परिषत् द्वारा प्रकाशित संस्करण के अनुसार ही है। ऐसी स्थिति में अनेक गाथाओं के मूल पाठ और हिन्दी अनुवाद में पर्याप्त विरोध दिखाई देगा। अतः संस्कृत छाया और मूल प्राकृत पाठ में जहां कहीं भी परिवर्तन या परिष्कार अभिप्रेत है, उसका उल्लेख भूमिका में कर दिया गया है । उन स्थलों का हिन्दी अनुवाद मैंने अपने स्वीकृत पाठ के अनुसार किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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