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________________ ( lit ) कुछ प्रतीकात्मक वज्जाओं में उत्कट अश्लीलता से बचने के लिये व्यंग्य का उद्घाटन नहीं किया गया है। प्रारंभ में प्रतीकों के अर्थ लिख दिये गये हैं । यदि आप उन प्रतीकों को पहचान कर प्रकरण में प्रवेश करेंगे तो व्यंग्य समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी । मेरा लक्ष्य वज्जालग्ग का अर्थोद्धार है, परिष्कार नहीं । अतः विवशता की स्थिति में ही मूल पाठ में थोड़े-बहुत परिवर्तन किये गये हैं । पुस्तक का अन्तिम प्रूफ मैं नहीं देख पाया, अतः संस्थान की ओर से पर्याप्त सावधानी होते हुये भी मुद्रण सम्बन्धी त्रुटियाँ शेष रह गई हैं । त्रुटियों की संख्या परिशिष्ट व में अधिक है । पुस्तक का वह भाग नितान्त महत्वपूर्ण है, अतः आप से निवेदन है कि कहीं विसंगति का आभास होने पर साथ में संलग्न शुद्धिपत्रक अवश्य देख लें । राज गोपाल संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य आचार्यप्रवर बैजनाथ द्विवेदी के सौजन्य से प्राप्त बृहत्संहिता का उपयोग कई गाथाओं की व्याख्या में किया गया है । डॉ० हरिहर सिंह ने 'श्रमण' में 'वजजालग्ग की कुछ गाथाओं के अर्थ - पर पुनर्विचार' शीर्षक से परिशिष्ट ख के प्रारंभिक भाग का प्रकाशन किया था । पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के शोध - सहायक डॉ० रवि शंकर मिश्र एवं डॉ० अरूण प्रताप सिंह ने मुद्रण-सम्बन्धी सारा दायित्व बड़ी कुशलता एवं तत्परता से वहन किया है, एतदर्थ मैं उक्त सभी महानुभावों का ऋणी हूँ । मेरे शिष्य सम्पूर्णानन्द उपाध्याय एम० ए०, साहित्याचार्य ने पाण्डुलिपि प्रस्तुत करने में सहायता की है, अतः उनके मंगलमय भविष्य की कामना करता हूँ। मेरी पुत्री आयुष्मती सुधा बी० ए० और मेरी पत्नी श्रीमती ललिता देवी विपत्ति के मर्म - वेधी क्षणों में भी सम्पूर्ण पारिवारिक दायित्व अपने ऊपर लेकर मुझे कुछ लिखने का अवसर प्रदान करती रही हैं, परन्तु उन्हें धन्यवाद कैसे दूँ, वे तो अपने ही अभिन्न अंग हैं | अन्त में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के निदेशक डॉ० सागरमल जैन के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना अपरिहार्य समझता हूँ, क्योंकि वज्जालग्ग को इस रूप में आप के समक्ष प्रस्तुत करने का श्रेय उन्हीं को है । - विश्वनाथ पाठक आश्विन शुक्ल द्वितीया संवत् २०४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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