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________________ (ixxxi ) पुव्वेण सणं पच्छेण वंजुला दाहिणेण वट विडवो। पुत्तिइ पुण्णेहि विना न लब्भए एरिसो गामो ॥ पूर्व में सन, पश्चिम में बेंत और दक्षिण में बरगद है, बेटी! बिना पुण्य के ऐसा गाँव नहीं मिलता है। जत्थ न खुज्जियविडवो न नई नवनं न उज्जडो गेहो । तत्थ भण कह वसिज्जइ सुविसत्थवज्जिए गामे ।। जहाँ न कुबड़े पेड़ हैं, न नदी हैं, न वन है और न उजड़ा घर ही है, उस निश्चिन्त स्थान से रहित गांव में बताओ कैसे रहा जाय ? इन गाथाओं में गाँव की प्राकृतिक स्थिति का वर्णन प्रच्छन्न प्रणय में अपेक्षित संकेत-स्थलों की सुलभता अथवा दुर्लभता के उद्देश्य से किया गया है। अनेक गाथाओं में जहाँ प्रकृति के स्वतन्त्र चित्र मिलते है, वहाँ भी अलंकारों के चमत्कार में उसका स्वरूप तिरोहित हो गया है। परन्तु बीच-बीच में ऐसे भी वर्णन उपलब्ध होते हैं, जिनका शब्दचित्र चित्त को बरबस मोह लेता है रुंदारविंदमयरंदाणंदियाली रिछोली । रणझणइ कसणमणिमेहल व्व महुमासलच्छीए ।। इस गाथा में विशाल अरविन्द मन्दिर में मकरन्द-पान से मुदित मधुकर-माला का उपमा के माध्यम से, जो चित्र अंकित किया गया है, उसमें नाद-सौन्दर्य ने चार चाँद लगा दिये हैं। इस प्रकार यद्यपि वज्जालग्ग में प्रकृति के बिम्बग्राही चित्रों की कमी है, किन्तु उद्दीपन के रूप में उसके वर्णन बड़े हृदयग्राही हैं । भाषा एवं शैली वज्जालग्ग की भाषा को हम मिश्रित भाषा कह सकते हैं । कतिपय विशेषताओं के आधार पर उसे जैनमहाराष्ट्री मान लेना बहुत उचित नहीं है, क्योंकि ग्रन्थ की सारी गाथायें न तो एक कवि की रचनायें हैं और न उनका रचना काल ही एक है । वे विभिन्न कालों में विभिन्न कवियों के द्वारा रची गई हैं । अतः भाषा की एकरूपता और व्यवस्था का सर्वत्र अभाव दिखाई देता है । यदि कतिपय गाथाओं में जैनमहाराष्ट्री की प्रवित्तियाँ दृष्टिगत होती हैं, तो कुछ में अर्धमागधी के भी प्रयोग मिलते हैं । सबसे अधिक प्रभाव तो अपभ्रंश का है । संक्षेप में विभिन्न प्रकृति लक्षणों की संकीर्णता ही वज्जालग्ग की भाषा का प्रधान लक्षण है। उसमें यदि पैशाची के समान ण के स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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