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________________ ४४६ वज्जालग्ग अब हम इस गाथा के वास्तविक अर्थ पर विचार करेंगे। इसमें यह बताया गया है कि जो राजा साम, दान और भेद-इन तीनों उपायों को उचित समय और स्थान पर कभी ग्रहण करते हैं और कभी छोड़ देते हैं, उनके प्रभाव की वृद्धि होती है और प्रायः दण्ड की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। मूल में स्थित 'सामाइणो' का संस्कृत रूपान्तर 'सामादयः' है, 'सामाजिकाः' या 'समाजिनः' नहीं । 'सामादयः' का अर्थ है-साम, दान और भेद संज्ञक उपायत्रय । दण्ड और टंकार शब्दों में श्लेष हैदंड = १. उपाय विशेष (दण्डनीति) २. धनुर्दण्ड टंकार = १. ज्या-शब्द २. ओज, तेज गाथार्थ-(अनुकूल अवसर और उचित स्थान पर) ग्रहण किये और छोड़ दिये गये सामादि उपाय राजाओं के प्रभाव को उत्पन्न करते हैं। दण्ड तो उसी प्रकार स्थित रह जाता है (अर्थात् उसका कभी उपयोग ही नहीं होता है)। तेज ही शत्रु को आमूल (जड़ समेत) नष्ट कर देता है। जैसे धनुर्दण्ड अपने स्थान पर ही रहता है परन्तु उसकी टंकार (ज्या-शब्द) हो शत्रुओं को मूल समेत मार डालतो है (अर्थात् पीडित करती है ।) हन् को गत्यर्थक मानकर निम्नलिखित अर्थ भी संभव है धनुर्दण्ड उसी प्रकार स्थित रहता है, उसकी टंकार ही शत्रु के निकट (मूल = निकट, देखिये मेदिनी कोश) तक पहुँच जाती है। श्लेषानुरोध से हन् के इस अर्थ में अप्रयुक्तत्व दोष नहीं हैअप्रयुक्तनिहतार्थो श्लेषादावदुष्टौ । __-काव्य प्रकाश, सप्तमोल्लास 'जिणंति' पाठ स्वीकार करने पर पूर्वार्ध का यह अर्थ होगा-- (उचित समय पर) ग्रहण किये गये और छोड़ दिये गये सामादि उपाय राजाओं (प्रतिपक्षियों) का तेज जीत लेते हैं। १. महाकवि वाक्पतिराजने इस शब्द का इसी अर्थ में इस प्रकार प्रयोग किया हैविणय गुणो दंडाडंबरो य मंडति जह परिंदस्स । तह टंकारो महुरत्तण य वायं पसाहेति ।। --उडवहो, ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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