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________________ वज्जालग्ग रत्नदेव ने इसकी व्याख्या नहीं की है। मूल में 'जणंति' के स्थान पर 'जिणंति' पाठ भी मिलता है। गाथा को अंग्रेजी में इस प्रकार अनूदित किया गया है __ "राज्य के लोग, जो पहले बन्दी बना लिये जाते हैं और फिर मुक्त कर दिये जाते हैं, राजाओं के प्रताप और महत्त्व को बढ़ाते हैं। बाण जहाँ है वहीं रहता है, परन्तु धनुष को प्रत्यंचा की टंकार पूर्णतया मार डालने ( या भयभीत करने ) में समर्थ होती है।" टिप्पणी में प्रमुख शब्दों के अर्थ इस प्रकार दिये गये हैंदण्ड = १-Physical Punishment, torture अर्थात् शारीरिक दंड २-Arrow अर्थात् बाण परन्तु काण्ड के पर्याय दण्ड को भी बाणार्थक मान बैठना ठीक नहीं है। एक शब्द के अनेक पर्याय होते है, परन्तु उनके सभी अर्थ समान नहीं हो सकते हैं। साहित्य में कहीं भी दण्ड का प्रयोग बाण के अर्थ में दिखाई नहीं देता और न कोशों में ही उसका उल्लेख है। गृहीत = Captured अर्थात् बन्दी सामाइणो = समाजिनः यद्यपि 'सामाइणो' की छाया 'सामाजिकाः' दी गई है तथापि अनुवादक ने उक्त शब्द का सम्बन्ध 'समाजिनः' से जोड़ते हुये लिखा है कि यहाँ सकार में दीर्घता ( Elongation ) आ गई है ( पृ० ५७३) । सामाजिक या समाजी का अर्थ है-भद्रपुरुष या सभ्य व्यक्ति । अब उपर्युक्त अर्थों का पर्यालोचन करने पर प्रश्न यह उठता है कि यदि सामाजिक का अर्थ भद्रपुरुष है तो उन्हें बन्दी क्यों बना लिया जाता है ? क्या भद्र पुरुषों के साथ राजा ऐसा ही व्यवहार करते हैं ? उक्त अंग्रेजी अनुवाद इतना विशृंखल है कि पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में कोई सम्बन्ध ही नहीं रह गया है। यदि गाथा की दोनों पंक्तियों में समर्थ्य-समर्थक-भाव मानें तो उत्तराध के द्वारा पूर्वार्ध का समर्थन संभव नहीं दिखाई देता है । प्रस्तुत गाथा 'ठाण वज्जा' में संकलित है। अंग्रेजी अनुवाद से लगता है जैसे यह अपने शीर्षक से बहुत दूर हट गई है। कदाचित् इसीलिये अनुवादक ने इसे 'out of Place' कहा है (भूमिका पृ० १०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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