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________________ ४०८ वज्जालग्ग 'पउर कुडिला' का अर्थ अपूर्ण है। अब उपर्युक्त पदों की यथार्थ व्याख्या नीचे दी जा रही हैबाणससंबंधं = १-बाण ( शर ) का सम्बन्ध बाणे बाणेषु वा सम्बन्धो यस्य, यह ताडन का विशेषण है जो बाणों से सम्बद्ध है ( संदंशिका-पक्ष ) २–वान ( शुष्क या नीरस ) का संसर्ग ( वेश्या-पक्ष) पउरकुडिला = १-प्रचुर कुटिल ( संदंशिका-पक्ष ) २-पौर-कुटिल अर्थात् पौरजनों के प्रति कुटिल व्यवहार करने वाली ( वेश्या-पक्ष ) मुट्ठीइ (मुष्ट्याः मुष्टेः वा) = मुट्ठी से सं ( स्वम् ) = धन वहइ = ले लेती है ( वेश्या-पक्ष ) मुट्ठइ संवहइ (मुष्ट्यां संवहति) = मुट्ठी में वहन करती है या मुट्ठी में रखती है ( अर्थात् अपनी पकड़ में रखती है ) (संदं शिका-पक्ष) गाथा का अर्थ यह है जैसे लोह-युक्त प्रचुर-कुटिला संदंशिका ( सँड़सी ) बाणों से सम्बन्धित, कठोर घनों का आघात सहती है और उस बाण को अपनी पकड़ ( मुट्ठी ) में रखती है, वैसे ही लोभयुक्त एवं पौरजनों से कुटिल व्यवहार करने वाली वेश्या संभोगजन्य सुदृढ़ अंग-निष्पीडन एवं नीरस ( शुष्क ) जनों के संसर्ग को सहन करती है और ( वेश्यागामियों की ) मुट्ठी से धन ले लेती है । __गाथा क्रमांक ५६३ जाओ पियं पियं पइ एक्कं विज्झाइ तं चिय पलित्तं । होइ अवरट्टिओ च्चिय वेसासत्थो तिणग्गि ब्व ॥ ५६३ ।। इसमें तृणाग्नि और वेश्यासार्थ के साम्य का वर्णन है । टीकाकारों ने मूल प्राकृत की संस्कृत छाया इस प्रकार दी है१. हैम प्राकृत व्याकरण, ३२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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