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वज्जालग्ग
इस अर्थ में 'वि' अपि का प्राकृत रूप नहीं है । यह वि उपसर्ग है ।
विलग्गए = विलगति अर्थात् विशेष रूप से लग जाती है ( या अटक जाती है )
गाथा क्रमांक ५६२
सहइ सलोहा घणघायताडणं तह य बाणसंबंधं । कुंठिव्व पउरकुडिला वेस्सा मुट्ठोइ संवहइ ॥ ५६२ ।।
सहते सलोभा ( सलोहा ) घनघातताडनं तथा च बाणसम्बन्धम् । संदर्शिकेव प्रचुरकुटिला वेश्या मुष्ट्या संवहति ॥
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- रत्नदेवसम्मत संस्कृत छाया
बाणसंबंध
४०७
-र
यहाँ बाण संरचना के समय कठोर घनाघात सहन करने वाली सँड़सी और वेश्या की तुल्यता का श्लिष्ट शब्दों में प्रतिपादन है । संस्कृत टीका में 'सलोहा' की उभयपक्षीय व्याख्या कर शेष पदों की छाया मात्र दे दी गई है । श्रीपटवर्धन ने श्लिष्ट - पदों के निम्नलिखित अर्थ दिये हैं
-
- सलोभा ( वेश्या - पक्ष )
सलोहा = १ २ - सलोहा ( संदंशिका - पक्ष ) घणघायताडणं = १ - घनों के आघातों की पीड़ा (संदंशिका-पक्ष) २ - संभोगजन्य सुदृढ़ निष्पीडन ( वेश्या - पक्ष ) १. - बाण का सम्बन्ध ( संदेशिका - पक्ष ) २- लिंग का सम्बन्ध ( वेश्या - पक्ष ) पउरकुडिला = १ - प्रचुरकुटिला ( संदर्शिका - पक्ष ) २ -- व्यवहार में कुटिल ( वेश्या - पक्ष )
संवहइ = १ - वेश्या केवल घूसा मारती है या घूसे से जोती जाती है । ( वेश्या - पक्ष )
यहाँ मुष्टि का अर्थ न तो घूसा है और न संवहइ का अर्थ विजित होना हो है । लिंग बाण का अभिधेय नहीं, आहार्य अर्थ है । अंग्रेजी अनुवादक ने कदाचित् आकार सादृश्य के बल पर ही उसका यह अर्थ किया है परन्तु श्लेष - मुख प्रेक्षितया बाण और बाण ( वान ) की अभेद कल्पना अधिक सुकर एवं समोचीन है ।
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