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वज्जालनग
गाथा क्रमांक ५०७ अंगारयं न याणइ न हु बुज्झइ हत्थचित्तसंचारं ।
इय माइ कूडगणओ कह जाणइ सुक्कसंचारं ॥ ५०७ ॥ अङ्गारकं न जानाति न खलु बुध्यति हस्तचित्रासंचारम् (हस्त चित्रसंचारम्) ।
इति मातः कूटगणकः कथं जानाति शुक्रसंचारम् ॥ इस गाथा पर यह टिप्पणी है
The astrological significance of अंगारयं न याणइ is not clear.
वराहमिहिर ने निम्नलिखित नक्षत्रों में मंगल ग्रह के संचार और उदय प्रशस्त बताये है
चारोदयाः प्रशस्ताः श्रवणमघादित्यहस्तमूलेषु । एकपदाश्विविशाखाप्राजापत्येषु च कुजस्य ॥ .
बृहत्संहिता, भौमाचाराध्याय, १२ गाथार्थ-अरी माँ, यह कूटगणक न तो मंगल ग्रह को जानता है और न यह उसका हस्त एवं चित्रा नक्षत्रों में संक्रमण' ( गमन ) ही समझता है। अतः शुक्र ग्रह का ( हस्त और चित्रा नक्षत्रों में ) संचार कैसे जानेगा ?
शृंगार-पक्ष-यह कूट मैथुनकारी रति-क्रिया ( अंगारयं = अंगरत ) नहीं जानता है और हाथों का विचित्र संचार ( करिहस्त' का विचित्र प्रयोग ) भी नहीं समझता । अरी माँ, वह कैसे शुक्र (वीर्य) का ( योनि में ) संचार (प्रवेश ) जानेगा ?
इस सन्दर्भ में काव्यप्रकाश के सप्तमोल्लास में उद्धृत निम्नलिखित श्लोक दर्शनीय है--
करिहस्तेन सम्बाधे प्रविश्यान्तविलोडिते ।
उपसर्पन् ध्वजः पुंसः साधनान्तविराजते ॥ १. शुक्र का हस्त और चित्रा में संक्रमण होने पर क्रमशः पीड़ा और जलवृष्टि होती है।
--(गाथा ५०१ को टिप्पणी) २. 'करिहस्त' काम-शास्त्र प्रतिपादित विशेष अंगुलि-मुद्रा है, जिसके द्वारा कठिन योनि को शिथिल किया जाता दै--
तर्जन्यनामिके युक्ते मध्यमा स्याद्वहिष्कृता । करिहस्तः समुद्दिष्टः कामशास्त्रविशारदैः ।।
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