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वज्जालग्ग
जल
३. मानेन गृहीतानाम् = आदर से गृहीत या प्राप्त ४. गृहीत स्थानानाम् = रतिबन्ध ( आसन विशेष ) को
ग्रहण करने वाली ५. रतिबन्ध में वक्र ६. अपने स्थान पर स्थित, अपने स्थान को ग्रहण करने
__ वाले ( ज्योतिष-पक्ष) = १. पानी २. जड, नीरस ( जलं गोकलने नीरे ह्रीवेरेऽप्यन्यवज्जडे
-मेदिनी)। बिन्दु =१. एक बूंद
२. वीर्य चित्तट्टिय = १. चित्रा में स्थित ( ज्योतिष-पक्ष )
२. चित्त में स्थित रहने वाला अर्थात् काम या प्रणय
३. चित्त में रहने पर सुक्क = १. शुक्र, वीर्य
२. शुष्क गाथार्थ- ( ज्योतिष-पक्ष ) हे सुन्दरि ! जब र विमण्डल अपने स्थान पर स्थित नक्षत्रों के प्रतिकूल रहता है, तब शुक्र के चित्रा नक्षत्र में स्थित होने पर भी जल की बंद नहीं पड़ती है अर्थात् वर्षा नहीं होती है।
जब सूर्य, मङ्गल, केतु आदि के द्वारा नक्षत्र पीडित होते हैं. तब अशुभ फल होता है और दृष्टि नहीं होती है ।२ वराहमिहिर के अनुसार चित्रा नक्षत्र में
ठाणो ण ठल्लयाणं ठाणिज्जन्तं ण यावि ठइयाणं । (मानो न निर्धनानां गौरवितत्वं न चाप्युत्क्षिप्तानाम्) हिन्दी में आज भी स्थान शब्द सम्मान के अर्थ में प्रचलित है ।
गहिय के ग्रहणीय अर्थ का आधार पाइयसद्दमहण्णव है । १. गहिय का अर्थ है-वक्रित ।
-~~देशोनाममाला, २१८५ २. रविसुतकेतुपीडिते भे क्षितितनयत्रिविधाद्भुताहते च । भवति च न शिवं न चापि वृष्टिः शुभसहिते निरुपद्रवे शिवं च ।।
-बृहत्संहिता, प्रवर्षणाध्याय, १०
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