SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वज्जालग्ग ३८५ विवरीए रइ बिंब १. विपरीते रविबिम्बे = सूर्य-मण्डल के प्रतिकूल होने पर ( ज्योतिष-पक्ष ) २. विपरीते रतिबिम्बे = योनि के विपरीत होने पर ३. विवृतेरतिबिम्बे = योनि के विवृत या अनावृत होने पर ( ये दोनों अर्थ शृङ्गार-पक्ष में हैं ) नवखत्ताणं १. नक्षत्राणाम् = नक्षत्रों का ( ज्योतिष-पक्ष ) २. नृखाप्तानाम् = नुः' नरस्य खम्२ इन्द्रियम् आप्तानां प्राप्तानाम् अर्थात् पुरुषेन्द्रिय अथवा लिंग को प्राप्त । ३. नखार्तानाम् ३ = नखों से आर्त ४. आत्तनखानाम् = नख धारण करने वाली स्त्रियों का ठाण गहियाणं १. स्थानकहतानाम् = स्थानकात् ( गृहात् ) हृतानाम् अपहृतानाम् आनीतानां वा अर्थात् अपने घर या स्थान से अपहत २. मानेन ग्रहणीयानाम् = सम्मान से ग्रहण करने योग्य १. ऋतोऽत् ( प्राकृत व्याकरण, १।१२६ ) से नर वाचक नृ शब्द में स्थित ___ ऋकार के स्थान पर अकार हो जाने पर न शब्द ( ण भी ) बनेगा। २. ख शब्द अनेकार्थक है खमिन्द्रिये पुरे क्षेत्रे शून्ये बिन्दी विहायसि । संवेदने देवलोके शर्मण्यपि नपुसकम् ॥ -मेदिनी आप्त का प्राकृत रूप है--अत्त । तीनों का समास होने पर ख का द्वित्व हो जायगा। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार समास में बहुलाधिकार के कारण शेष और आदेश के अभाव में भी द्वित्व होता है ( सूत्र २१९७ को वृत्ति)। ३. सेवादिषु ( प्राकृत प्रकाश, ३१५७ ) से द्वित्व । ४. यहाँ प्राकृत के स्वभावानुसार समास में आप्त शब्द का परनिपात हो ___ गया है। ५. ठाण देशी शब्द है। देशीनाममाला में इसका अर्थ मान दिया गया है। पाइयसद्दमहण्णवकार ने मान को अभिमान के अर्थ में ग्रहण किया है, जो ठीक नहीं है। उक्त शब्द का प्रयोग प्रदर्शित करने के लिए उनके प्रमाण भूत आचार्य हेमचन्द्र ने जो गाथा दी है, उससे पता चलता है कि उक्त शब्द का अर्थ सम्मान है२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy