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मानकर 'सुखद-देवाः अथवा 'सुहत देवाः' यह छाया करें तो 'सुख देने वाले देवता भी नहीं मिले' या 'अभागे देवता भी नहीं मिले' ये दो अर्थ होंगे । इन दोनों अर्थों में प्रथम के भीतर यह व्यंग्य निहित है कि नायक के समागम सौख्याभाव में नायिका को देवता भी सुख न दे सके ।
वज्जालग्ग
शब्दार्थ —— सोहग्ग = सौभाग्यम् ( सुभगस्य भावः सौभाग्यम् ) धन ' प्राचुर्य, महत्त्व या ऐश्वर्य
णवसिय - उपयाचितक = मनौती २
गाथा क्रमांक ४६०
अमुणिय - पियमरणाए वायसमुड्डाविरीइ घरिणीए । रोवाविज्जइ
गामो अणुदियहं बद्धवेणी || ४६० ॥
'भोः काक', 'उड्डयस्व मम भर्ता गमिष्यति' इस टोका-वाक्य को अन्यथा समझकर प्रो० पटवर्धन ने प्रस्तुत गाथा में निम्नलिखित टिप्पणी की है
" जिनके पति, भाई और अन्य सम्बन्धी प्रवास में रहते हैं, वे स्त्रियाँ जब कौए को समीप आते देखती हैं तब उसे दूर उड़ा देती हैं ।” उन्होंने आगे लिखा है " कौए की उपस्थिति और उसे दूर उड़ा देने का भाव स्पष्ट नहीं है । कदाचित् कौए का आगमन यह सूचित करता है कि प्रेमी नहीं लौटेगा और इसीलिये महिला उसे दूर उड़ा देती है- "हे काक ! दूर उड़ जाओ, ईश्वर करे मेरा प्रेमी लौट आये | क्या काक- दर्शन प्रेमी की मृत्यु का सूचक है और क्या महिला उसे अपशकुन समझकर दूर उड़ा देती है ? परन्तु पूर्ववर्ती गाथाओं में टीकाकार के अनुसार कौमा वल्लभागमन-सूचक है या वल्लभ-कुशल- निवेदक है और इसलिये महिला उसका स्वागत करना चाहती है एवं उसे भोजन प्रदान करती है ।"३
उपर्युक्त टिप्पणी भ्रम-जनित है । 'भोः काक उड्डयस्व मम भर्ता गमिष्यति' इस कथन में विरहिणी के मनोगत आह्लाद का स्फुरण है । इस कथन का यह
१. भगं श्रीयोनिवीर्येच्छा ज्ञानवैराग्यकीर्तिषु । माहात्म्यैश्वर्ययत्नेषु धर्मे मोक्षे च ना रवौ ॥
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— मेदिनी
२. देशीनाममाला, ४।२२ ।
३. वज्जालग्गं, ( अंग्रेजी संस्करण ) पृ० ५००
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