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वज्जालग्ग
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बेचारी कहीं गिर पड़ी होगी। अतः नायिका के वाग्वैदग्ध्य एवं गाथा के काव्य-गुणोत्कर्ष की रक्षा के लिए विदग्ध वेद्य-उपर्युक्त अर्थ के अतिरिक्त निम्नलिखित सामान्यजन-ग्राह्य, प्रकट अर्थ स्वीकार्य है
हे दूति ! मेरे निकट तक आने में जो स्वेद उत्पन्न हुआ है, इससे तुम्हारे अंग भीग गये हैं, तुम्हारा केशपाश थोड़ा खिसक गया है, तुम्हारे स्तनों, जघनों, कपोलों और नखों पर लगी चोटों से (क्षत = घाव या चोट) से ज्ञात हो गया है, कि जैसे तुम कहीं गिर पड़ी हो ।
गाथा क्रमांक ४१९ इय रक्खसाण वि फुडं दुइ न खज्जति दुइया लोए । अह एरिसी अवस्था गयाण अम्हं वसे जाया ॥ ४१९ ॥ (एवं राक्षसानामपि स्फुटं दूति न खाद्यन्ते दुतिका लोके ।
अथेदृश्यवस्था गतानामस्माकं वशे जाता ॥) . रत्नदेव ने केवल इसकी संस्कृत छाया दी है, व्याख्या नहीं की है। प्रो० पटवर्धन ने खज्जति का अनुवाद 'खिद्यन्ते' किया है। व्याख्यात्मक टिप्पणी में गाथा के भाव की अस्पष्टता का उल्लेख है और अंग्रेजी अनुवाद को अनुमान पर अवलम्बित बताया गया है। यदि गाथा को निम्नलिखित प्रसङ्ग में रख दें तो अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जायगा
नायिका ने नायक को मनाने के लिए जिस दती को भेजा था, वह उसी के साथ रमण करके लौटी। कपोलों पर अंकित संभोग-सूचक दन्तक्षत स्पष्ट लक्षित हो रहे थे । अतः विदग्ध नायिका सब रहस्य ताड़ गई। वह कृत्रिम सहानुभूति के स्वर में व्यंग्य करती हुई कहती है
अर्थ-हे दति ! राक्षसों के भी लोक में दुतियां इस प्रकार स्पष्ट नहीं खाई जाती हैं। हमारे वश में रहने वाली ( सेविकाओं, दूतियों ) की हाय ! अब यह दशा हो गई । अथवा द्वितीया का यह अर्थ करें
हम गये हुए ( गये गुजरे, मृततुल्य या नष्टप्राय ) लोगों के वश में रह कर तेरी यह दशा हो गई है।
१. The sense of the gatha is obscure. The English transl
ation is purely conjectural. वज्जालग्गं पृ० ४९१
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