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________________ वज्जालग्ग कररुह्स्तनु स्पृश्यमाना । अर्थात् नाखूनों से जरा छुई जाती हुई । यदि त को लुप्तविभक्तिक सप्तम्यन्त पद मान लें तो छाया का स्वरूप यह हो जायगा - कररुहैस्तनौ स्पृश्यमाना । अर्थात् नाखूनों से शरीर में छुई जाती हुई । इस छाया में तणु का अर्थ शरीर होगा | अकाल घण भहवं की व्याख्या यों होगी ३७५ १. अकाले घनभाद्रपदम् = अकाल में घना भादौं २. अकालघन भाद्रपदम् = न कालधनाः कृष्णमेघाः विद्यन्ते यस्मिन् तादृश भाद्रपदम् अर्थात् बिना काले मेघों का भादौं । गाथा में प्रेयसी के अंग- मार्दव का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है । वह इतनी सुकुमार थी कि नायक अंगुलियों से भी स्पर्श करते नाखून छू गये तो रोते-रोते असमय में ही आँखों के आँसुओं से उपस्थित कर देती थी । विरह के दारुण दिनों में प्रिया की मसृणता की स्मृतियाँ नायक के भावुक हृदय-पटल को बार-बार कुरेद रही हैं । वह कहता है डरता था क्योंकि यदि कहीं भादों का प्लावन सुकुमारता और गाथार्थ -- उस नवीन नलिनी के समान कोमल अंगों वाली प्रिया का स्मरण क्यों न करें जो (हाथ के ) नाखूनों से तनिक छू जाने पर ( छुई जाती हुई ) अकाल में ही घना भादौं उपस्थित कर देती थी (अथवा कृष्ण मेघों के विना ही भादौं उपस्थित कर देती थी) । Jain Education International नाखून लग जाने की आशंका कुछ स्वाभाविक भी हो सकती है, बिहारी को नायिका तो जब पुष्पशय्या पर करवटें लेती थी तब उसकी सहेलियों को गुलाब की पंखुरियों से खरोट लगने का भय होने लगता था । ' गाथा क्रमांक ४०२ कह सा न संभलिज्जइ जा सा नीसाससोसियसरीरा । आसासिज्जइ सासा जाव न सासा समप्पंति ॥ ४०२ ॥ १. हो बरजी कै बार तैं, उत जनि लेहि करौट | पंखुरी लगे गुलाब की परिहै गात खरौट || 1 For Private & Personal Use Only -- बिहारी सतसई www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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