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वज्जालग्ग
( कथं सा न संस्मर्यते या सा निःश्वासशोषितशरीरा । आश्वास्यते यावन्न सासा:
सासा
समाप्यन्ते || )
प्रो पटवर्धन ने तृतीय चरण में अंग्रेजी अनुवाद में सासा ( श्वासाः ) का टिप्पणी में लिखा है
- रत्नदेवसम्मत छाया
सासा के स्थान पर श्वासाः कर दिया है । अर्थ छोड़ दिया गया है । व्याख्यात्मक
आसासिज्जइ सासा is obscure.
पुनः 'सासा' को सासाए या श्वासवती के अर्थ में घसीटने का प्रयत्न किया गया है । "
उपर्युक्त दोनों व्याख्याकारों की संस्कृत छायाएं दोषपूर्ण हैं । द्वितीयार्ध की छाया इस प्रकार की जानी चाहिये
आश्वास्यते साशा यावन्न श्वासाः समाप्यन्ते ।
साशा का अर्थ है आशा सहित (आशया सहिता) । यदि साशा पद को पूर्वार्ध स्थित सा का विशेषण मानें तो यह अर्थ होगा-
निःश्वासों से शरीर ( अपना या मेरा ) सुखा देने पर भी जो आशावती है, उसका स्मरण क्यों न किया जाय । जब तक साँसें समाप्त नहीं हो जाती तब तक (अपने या दूसरे को ) आश्वासन दिया जाता है |
यदि साशाः पद को श्वासाः का विशेषण मान लें तो अर्थ यह होगा
जिसने निःश्वासों से शरीर सुखा डाला है उसका स्मरण क्यों न किया जाय ? जब तक आशा सहित साँसें ( श्वास ) समाप्त नहीं हो जाती तब तक आश्वासन दिया जाता है ।
इस अर्थ के अनुसार संस्कृत छाया में साशा के स्थान पर साशाः पद होगा । यदि चाहें तो सासा की छाया साखा मान कर यह अर्थ कर लें
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उसासा (अश्रुयुक्त ) विरहिणी को तब तक आश्वासन दिया जाता है। जब तक साँसें समाप्त नहीं हो जातीं, वह मर नहीं जाती ।
१. वज्जालग्ग, अंग्रेजी टिप्पणी, पृ० ४८८ ।
२. न दीर्घानुस्वारात् - प्रा० व्या० २१९२ से द्वित्वाभाव |
अभिः सहिता अर्थात् अश्रु सहित ।
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सास्रा = अत्रैः
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