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________________ ३७६ वज्जालग्ग ( कथं सा न संस्मर्यते या सा निःश्वासशोषितशरीरा । आश्वास्यते यावन्न सासा: सासा समाप्यन्ते || ) प्रो पटवर्धन ने तृतीय चरण में अंग्रेजी अनुवाद में सासा ( श्वासाः ) का टिप्पणी में लिखा है - रत्नदेवसम्मत छाया सासा के स्थान पर श्वासाः कर दिया है । अर्थ छोड़ दिया गया है । व्याख्यात्मक आसासिज्जइ सासा is obscure. पुनः 'सासा' को सासाए या श्वासवती के अर्थ में घसीटने का प्रयत्न किया गया है । " उपर्युक्त दोनों व्याख्याकारों की संस्कृत छायाएं दोषपूर्ण हैं । द्वितीयार्ध की छाया इस प्रकार की जानी चाहिये आश्वास्यते साशा यावन्न श्वासाः समाप्यन्ते । साशा का अर्थ है आशा सहित (आशया सहिता) । यदि साशा पद को पूर्वार्ध स्थित सा का विशेषण मानें तो यह अर्थ होगा- निःश्वासों से शरीर ( अपना या मेरा ) सुखा देने पर भी जो आशावती है, उसका स्मरण क्यों न किया जाय । जब तक साँसें समाप्त नहीं हो जाती तब तक (अपने या दूसरे को ) आश्वासन दिया जाता है | यदि साशाः पद को श्वासाः का विशेषण मान लें तो अर्थ यह होगा जिसने निःश्वासों से शरीर सुखा डाला है उसका स्मरण क्यों न किया जाय ? जब तक आशा सहित साँसें ( श्वास ) समाप्त नहीं हो जाती तब तक आश्वासन दिया जाता है । इस अर्थ के अनुसार संस्कृत छाया में साशा के स्थान पर साशाः पद होगा । यदि चाहें तो सासा की छाया साखा मान कर यह अर्थ कर लें २ Jain Education International उसासा (अश्रुयुक्त ) विरहिणी को तब तक आश्वासन दिया जाता है। जब तक साँसें समाप्त नहीं हो जातीं, वह मर नहीं जाती । १. वज्जालग्ग, अंग्रेजी टिप्पणी, पृ० ४८८ । २. न दीर्घानुस्वारात् - प्रा० व्या० २१९२ से द्वित्वाभाव | अभिः सहिता अर्थात् अश्रु सहित । *For Private & Personal Use Only सास्रा = अत्रैः www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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