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५. स्तन
२३. वैद्य ६. लावण्य
२४. धार्मिक ७. सुरत
२५. यांत्रिक ८. प्रेम
२६. बालासंवरण ९. मान
२७. कुट्टिनी शिक्षा १०. प्रोषित
२८. रुद्र ११. विरह
२९. कृष्ण १२. अनंग
३०. हृदयवतो १३. पुरुषालाप
३१. वसन्त १४. प्रियानुराग
३२. हेमन्त १५. दुती
३३. पावस १६. पथिक
३४. दोषिक १७. मुसल
३५. चक्रवाक ( मानवेतर रति ) १८. धन्य
३६. करभ १९. हृदयसंवरण
३७. गज २०. असती
३८. अवरुग्णा २१. ज्योतिषिक
३९. बालाश्लोक २२. लेखक __ उपर्युक्त वज्जाओं के अवलोकन से प्रस्तुत ग्रन्थ में श्रृंगार रस की व्यापकता का सहज अनुमान लग सकता है । वज्जालग्ग में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों का चार चित्रण है । यद्यपि संभोग और विप्रलम्भ दोनों के उदात्त वर्णनों से वज्जायें भरी पड़ी हैं, परन्तु प्राधान्य विप्रलम्भ का ही है। वाह और सुरय वज्जाओं को छोड़कर अन्य वज्जाओं में उसी का साम्राज्य है । जीवन में वियोग की व्याप्ति अधिक है। संयोग के अवसर नितान्त सीमित हैं। इसीलिये विप्रलेस में जो तीव्रता रहती है, वह संभोग में नहीं । संभवतः इसी मनोवैज्ञानिक तथ्य को समझ कर संग्रहकार ने विप्रलंभ से सम्बन्धित गाथाओं को भारी संख्या में संगृहीत किया होगा। विप्रलंभ के अन्तर्गत अभिलाष (पूर्वराग) मान और प्रवास-इन तीनों की नाना अन्तर्दशाओं के कल्पनामय शब्दचित्र देखते ही बनते हैं। अनेक वज्जाओं में नारी के पार्थिव रूप के प्रति अभिलाष की अभिव्यक्ति की गई है। अंगों में नयन और स्तन के वर्णन को सर्वाधिक महत्व मिला है। नेत्र चार प्रकार के बताये गये हैं-प्रियों के लिये वक्र , स्वजनों के लिये सरल, मध्यस्थ
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