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________________ वज्जालग्ग ३५९ उसका अर्थ दूध है । इसके अनुसार गाथा का अर्थ निम्नलिखित होगा "जब रणभूमि में विपक्ष-प्रहारों से परवश और मूच्छितप्राय हो जाने पर भी सुभटगण रणभूमि में एक डग आगे ही रखते हैं, तब हम यह नहीं समझ पाते कि प्रेम और दूध में कौन बड़ा है । अर्थात् उस दारुण दशा में भी वे प्रभु-प्रेमवश ही आगे बढ़ते जाते हैं या उनकी माताओं के दूध में ऐसी अद्भुत शक्ति है जो उन्हें पीछे नहीं लौटने देती।" आगे पद रखना दोनों कारणों से सम्भव है, अतः कवि उनके आधिक्य का निश्चय नहीं कर सका। अधिक शब्द यहाँ श्रेष्ठता के अर्थ में है। गाथा क्रमांक १८३ अमुणियगुणो न जुप्पइ न मुणिजइ स य गुणो अजुत्तस्स । थक्के भरे विसूरइ अउव्ववग्गं गओ धवलो ॥१८३।। अपूर्ववल्गां गतः ( अउव्ववग्गं गओ ) प्रथम बार गत्यवरोधक रज्जु से रोका गया। श्री पटवर्धन ने 'वल्गा' को गमन के अर्थ में ग्रहण किया है, परन्तु यहाँ वल्गा का अर्थ रश्मि ( प्रग्रह ) या गत्यवरोधक रज्जु है। गाड़ी में जुते बैल की गति को नियन्त्रित करने के लिये उसको नाथ ( नासा-रज्जु ) में एक रस्सी बंधी रहती है, जिसे खींचकर गाड़ीवान उसे काबू में रखता है या अनावश्यक रूप से बढ़ने नहीं देता। इसी रस्सी को वल्गा कहा गया है। गाथा का भाव यह है-बिना गुणों को समझे कोई बैल जोता नहीं जाता है और जोते बिना गुण भी नहीं ज्ञात होता है। सुदृढ और बलवान् बैल को दुःख तब होता है जब भार से लदी गाड़ी में उसे पहली बार गत्यवरोधक रज्जु से रोक दिया जाता है। गाथा क्रमांक २१० जह जह न चडइ चावो उम्मिल्लइ करह पल्लिणाहस्स । तह तह सुण्हा विप्फुल्लगंडविवरुम्मुही हसइ ॥२१०॥ 'विप्फुल्लगंडविवरुम्मुही' में समास इस प्रकार है--विप्फुल्लंमि गंडमि विवरो जीए सा विप्फुल्लगंडविवरा सा य उम्मुही विप्फुल्लगंडविवरुम्मही ति । श्रीपटवर्धन का निम्नलिखित विग्रह-वाक्य भी ठीक है-विप्फुल्लगंडविवरा च उन्मुखी च । परन्तु अंग्रेजी अनुवाद में विप्फुल्ल को विवर का विशेषण लिखना ठीक नहीं है क्योंकि उत्फुल्लत्व धर्म विवर में नहीं है । हास्य के समय गंड में अवश्य उत्फुल्लता आ जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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