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________________ ३५८ घर के भीतर रखे जाते हैं, जो सेवक कोई सहायता नहीं करते वे चाहे कितने ही सुन्दर क्यों न हों, बाहर रखे जाते हैं" ।" वज्जालग्ग हम 'विहरसहाय' को न तो सहायविहर मानना ही आवश्यक समझते हैं और न सहाय को साहाय्य पढ़कर शब्द के साथ खिलवाड़ ही करना चाहते हैं । 'विहुर - सहाय' का सीधा सा अर्थ है - संकट में सहायक ( विहुरंमि आवइ-पाले सायो ) । गाथा का अर्थ यह है गजेन्द्र के कृष्णदन्त जो खाने का कार्य करते हैं, वे भीतर रहते हैं । जो विपत्तियों में सहायक बनते हैं, वे शुभ्रदन्त बाहर रहते हैं ( हाथी अभ्यन्तरवर्ती कृष्णदन्तों से खाता है और बाह्य श्वेत-दन्तों से युद्ध करता है ) । यहाँ अप्रस्तुतप्रशंसा के माध्यम से यह बताया गया है कि राजा लोग प्रायः गुणियों का सम्मान नहीं करते, चाटुकारों को ही अधिक प्रश्रय देते हैं । पद्य का अभिप्राय यह है - जो काली करतुतों वाले चाटुकार केवल बैठे-बैठे खाते हैं, कुछ करते नहीं, वे तो राजा के अन्तरंग बन जाते हैं और जो उज्ज्वल चरित वाले सेवक संकट काल में सहायक बनते हैं, वे उपेक्षित रह जाते हैं ( बाहर रह जाते हैं ) । गाथा क्रमांक १६२ जं दिज्जइ पहरपरव्वसेहिं मुच्छागएहि पयमेक्कं । तह नेहस्स पयस्स व न याणिमो को समब्भहिओ || १६२ ।। प्रो० पटवर्धन ने उत्तरार्ध में प्रयुक्त 'पयस्स' की छाया 'पदस्य' की है, जो असंगत है क्योंकि एक ही छन्द में और एक ही अर्थ में 'पद' शब्द दो बार प्रयोग होने से पुनरुक्ति दोष होगा । पृ० ४४१ पर व्याख्यात्मक टिप्पणी में उन्होंने अपने अनुवाद को अटकल पर आधारित बताया है और छन्द के उत्तरार्ध की अस्पष्टता का उल्लेख किया है । रत्नदेव ने 'पयस्स' को 'पयसः ' समझकर उक्त अंश की निम्नलिखित व्याख्या की है न जानीमः किमधिकम् स्नेहपानीययोर्मध्ये | अर्थात् स्नेह और पानी में क्या अधिक है - यह नहीं जानते । इस व्याख्या का आशय स्पष्ट नहीं है । मेरे विचार में 'पय' का अर्थ न 'पद' है, न 'पानीय' । १. पृ० २९२ पर मूल अंग्रेजी और पृ० ४४० पर अंग्रेजी टिप्पणी देखिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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