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________________ वज्जालग्ग प्रो० पटवर्धन ने चित्तल का अर्थ Possessed of a fickle, unsteady mind' लिखा है और रत्नदेव ने 'नानाचित्ते आश्चर्य युक्ते ।' यदि पिशुन पक्ष में उक्त शब्द का अर्थ मंडित या सजा-धजा किया जाय तो अधिक उपयुक्त है :चच्चिय-चित्तला मंडियंमि । ( चच्चिय और चित्तल का अर्थ मंडित है ) चित्तलं रमणीयमित्यन्ये । १. वज्जालग्गं, पृ० ४२४ २. वज्जाल गं, पृ०, २७९ ३५१ - देशीनाममाला, ३१४ (चित्तल का अर्थ अन्य विद्वान् रमणीय मानते हैं) गाथार्थ - जिसका ध्यान दूसरों के दोषों (विवर) पर रहता है, जिसकी गति (व्यवहार) कुटिल है, जो चुगली किया करता है उस सजे-धजे ( मंडित ) एवं भयानक पिशुन (दुष्ट) से सुख कहाँ ? ठोक वैसे हो, जैसे दूसरों के बिलों में प्रविष्ट हो जाना ही जिसका लक्ष्य है, जिसके शरीर पर चित्तियाँ हैं, जिसके दो जिह्वायें हैं और जो कुटिल गति से चलता है, उस भयानक सर्प से । Jain Education International - देशीनाममाला, ३।४ की वृत्ति । सर्प अपने तुच्छ इस कथन की पिशुने का अर्थ सर्प और पिशुन दोनों ही सुख के अधिकरण हो सकते हैं । जीवन में सुखी रहता है और दुष्ट भी । अतः 'पिशुने सुखं कुतः ' सार्थकता नहीं रह जाती । कदाचित् इसीलिए प्रो० पटवर्धन ने in the company of a wicked person' और गोनसे का ' in the viclnity of a snake किया है । परन्तु यह तब संभव था शब्द बहुवचन होते । वस्तुतः यहाँ सप्तमी को तृतीया के अर्थ में चाहिए । द्वितीया तृतीययोः सप्तमी 'पिशुने सुखम् ' का अर्थ पिशुनेन सुखम् है । गाथा क्रमांक ५८ असमत्थमंततंताण कुलविमुक्काण भोय होणाणं । दिट्ठाण को न बीहइ वितरसप्पाण व खलाणं ॥ ५८ ॥ For Private & Personal Use Only जब उक्त दोनों स्वीकार करना - प्रा० व्या०, ३।१३५ www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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