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________________ वज्जालग्ग ३४५ एकत्थे पत्थावे जत्थ पढिज्जंति पउर गाहाओ तं खलु वज्जालग्गं वज्ज त्ति य पद्धई भणिया । गा० ४ एयं वज्जालग्गं सव्वं जो पढइ अवसरंमि सया। पाइय-कव्वकई सो होहिइ तह कित्तिमन्तो य ॥ गा० ५ एतं वज्जालग्गं ठाणं गहिऊण पढइ जो को वि । नियठाणे पत्थावे गुरुत्तणं लहइ सो पुरिसो ॥ पर्यन्त गा० २ उपसंहार में केवल एक स्थान पर 'वज्जालय' का प्रयोग मिलता है, जो प्रमादवश भी हो सकता है। प्रो० पटवर्धन के अनुसार वहाँ छन्दोभंग है। उपर्युक्त अन्य गाथाओं में छन्द को गति को बिना तोड़े 'वज्जालग्ग' के स्थान पर 'वज्जालय' का प्रयोग संभव नहीं है । अतः ग्रन्थ का नाम वज्जालग्ग है । वज्जाओं का आलय होने से उसे 'वज्जालय' तो कह भी सकते हैं, परन्तु विद्यालय या पद्यालय कभी नहीं। उपर्युक्त विवेचन से सिद्ध होता है कि टीकाकार व्याख्येय ग्रन्थ का ठोक-ठीक नाम नहीं दे सके। विवेच्य गाथा में 'जयवल्लहं' के 'नाम' का प्रयोग देख कर उन्होंने ग्रन्थ का नाम ही 'जयवल्लभ' समझ लिया, जिससे आगे चल कर एक बहुत बड़ी भ्रान्ति की परम्परा चल पड़ी । नाम शब्द अनेकार्थक है नाम कोपेऽभ्युपगमे विस्मये स्मरणेऽपि च । संभाव्यकुत्सा-प्राकाश्य-विकल्पेऽपि दृश्यते ।।-मेदिनीकोश नाम प्राकाश्य-संभाव्य-क्रोधोपगम-कुत्सने ! ---अमरकोश 'पाइयसहमहण्णव' के अनुसार नाम या णाम का प्रयोग वाक्यालंकार या पादपूर्ति के लिये भी होता है। कालिदास ने इस शब्द का प्रयोग निश्चय या स्वीकार के अर्थ में किया हैविनीतवेषेण प्रवेष्टव्यानि तपोवनानि नाम । -अभिज्ञानशाकुन्तल, प्र० अ० अतः प्रस्तुत गाथा में नाम शब्द या तो पादपूर्ति या वाक्यालंकार के लिये प्रयुक्त है अथवा उपगम या निश्चय के लिये। जब तक रत्तदेव की अविश्वसनीय टीका के अतिरिक्त कोई अन्य प्रबल प्रमाण नहीं मिल जाता तब तक हम प्रस्तुत गाथा में प्रयुक्त नाम शब्द को अभिधानार्थक मानने के लिये बाध्य नहीं हैं। 'जयवल्लह' का संस्कृत रूपान्तर, जैसा कि कुछ विद्वानों ने माना है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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