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________________ ३४४ वज्जालग्ग का ठीक-ठीक अर्थ ही नहीं समझ सके । टीका में उक्त शब्द का जो अर्थ दिया गया है, वह केवल अटकल पर आधारित है, अन्यथा एक ही ग्रन्थ को कभी विद्यालय कभी पद्यालय और कभी वज्जालय कहने का कोई कारण नहीं । इस सन्दर्भ में टीका के निम्नलिखित वाक्य द्रष्टव्य हैं- - विद्यालयस्यच्छाया लिख्यते ।-टीकारम्भ, पृ० ३ वज्जालयं विरचितम् ।-तृतीय गा० टीका, पृ० ३ । तत्खलु विद्यालयं नाम ।-चतुर्थ गा० टीका, पृ० ४ इदं विद्यालयं सर्वं यः पठत्यवसरे सदा..."।-पंचम गा० टीका, १० ४ कविजनैविरचिते वज्जालये सकललोकाभीष्टेः।-७९४वीं गाथा की टीका एतद् वज्जालग्गं पद्यालयं स्थानं गृहीत्वा ।-७९५वी गाथा की टीका उपर्युक्त स्थलों पर टीका वज्जालग्ग शब्द का कोई एक निश्चित अर्थ नहीं देती साथ ही चतुर्थ गाथा की टीका में यह स्वीकार किया गया है कि पद्धति वाचक संस्कृत पद्या शब्द प्राकृतवशात् 'वज्जा' हो गया एकार्थे प्रस्तावे यत्र प्रचुरा गाथाः पठ्यन्ते तत् खलु विद्यालयं नाम । वज्जा इति पद्धतिर्भणिता । अथवा प्राकृतवशात् पद्या पद्धतिः सरणिः । परन्तु प्राकृत व्याकरणानुसार पद्या से पज्जा शब्द निष्पन्न होगा, ‘वज्जा' नहीं, क्योंकि आद्य प के स्थान पर व नहीं होता । यदि व्याकरण के नियमों की बहुलता (विभाषा) के कारण कथञ्चित 'वज्जा' की निरुक्ति पद्या से मान लें, तो भी ग्रन्थ का नाम वज्जालग्ग ही होगा, विद्यालय नहीं, क्योंकि मूल पाठ में वज्जा के साथ लग्ग शब्द जुड़ा है। फिर भी उसी गाथा की व्याख्या में ग्रन्थ का नाम 'विद्यालय' लिखा है। इस प्रकार टीका 'वज्जालग्ग' का अमंदिग्ध अर्थ देने में असमर्थ है । टीकाकार कदाचित् पद्या से वज्जा और वज्जा से विज्जा (विद्या) का सम्बन्ध जोड़ना चाहते हैं, फिर भी लग्ग शब्द अव्याख्यात रह गया है। यह भी संभव है कि 'वज्जालग्ग' के तात्पर्य से अनभिज्ञ संशयग्रस्त टीकाकार ने 'जयवल्लभ' के साथ नाम शब्द का प्रयोग देखकर ग्रन्थ का वास्तविक नाम 'जयवल्लभ' ही समझ लिया हो । परन्तु ग्रंथ का वास्तविक और एकमात्र नाम 'वज्जालग्ग' है, जयवल्लभ नहीं। इसका प्रमाण मूल ग्रन्थ की निम्नलिखित गाथाओं में है, जिनमें ग्रन्थ के लिये 'वज्जालग्ग' का प्रयोग किया गया है विविह कइविरइयाणं गाहाण वरकुलाणि घेतूण । रइयं वज्जालग्गं" .." ." | गा० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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