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(xix) सब पर उसकी सूक्ष्म दृष्टि है। इसमें यदि स्पृहणीय आदर्श का समुज्ज्वल आकर्षण है, तो यथार्थ की उपेक्षणीय व्यावहारिक कुरूपता भी कम नहीं है । अतः यह काव्य सच्चे अर्थों में एक साहित्यिक कृति है।
वज्जालग्ग एक उत्कृष्ट काव्य होने के साथ-साथ कवियों और समीक्षकों का उचित मार्गदर्शक भी है। प्रारंभिक दो वज्जाओं में काव्य, काव्य-श्रोता और काव्य-समीक्षकों के सम्बन्ध में अनेक मान्यतायें दी गई हैं।
ध्वनि, अलंकार, गेयत्व और ललितपद-विन्यास की सुषमा से मंडित इसकी प्रसन्न-गम्भीर शैली प्रत्येक हृदय को मुग्ध कर देती है। इसमें यत्र-तत्र विभिन्न रसों के सुन्दर उदाहरण बिखरे पड़े हैं । कुछ पंक्तियाँ देखिये
रणभूमि में घायल पड़े वीर की आँते गुध्र खींच रहे हैं, परन्तु वह उस पीड़ा को असह्य होने पर भी इसलिये सह रहा है कि पास में पड़े हुये स्वामी की मूर्छा पंखों की हवा से टूट जाय
पक्खणिलेण पहुणो विरमउ मुच्छ त्ति पास पडिएण । गिद्धत कड्ढणं दूसहं पि साहिज्जइ भडेण ॥
-यहाँ बीभत्स रस वीररस का अंग होने के कारण गुणीभूत है। 'किसी प्रोषितपतिका बहू का प्रवासी पति दूर प्रवास में ही मर चुका है। वह बेचारी यह समाचार नहीं जानती है। अतः प्रत्येक दिन जब वेणी बांधकर गृह-शिखर से (प्रिय को बुला लाने के लिये) कौआ उड़ाने लगती है, तब सारा गांव रो पड़ता है
अमुणिय पिय मरणाए वायसमुड्डाविरोइ घरिणीए। रोवाविज्जइ गामो अणुदियहं बद्धवेणीए॥
-करुण रस कृपण जन यह जानकर पृथ्वी में अपना धन गाड़ देते हैं कि हमें एक दिन रसातल में जाना ही है, तो पहले से ही प्रस्थान क्यों न रख
निहणंति धणं धरणीयलंमि इय जाणिऊण किविणजणा। पायाले गंतव्वं ता गच्छउ अग्गठाणं पि॥
-हास्य रस मनुष्य की आयु सौ वर्ष है। उसमें भी आधी रातें निकल जाती हैं। उस शेष आधे भाग का भी आधा जरा और शैशव छीन लेते हैं।--जीवन जल-बिन्दु
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