________________
वज्जालग्ग
३२९
४७२*२. दूती! सरसों के बराबर सुख के लिए अपने कूल में कलंक लगा कर, अपने पति को धोखा देकर और अपयश का नगाड़ा पोट कर कौन अपनी विडम्बना करे ? ॥ १॥
असई-वज्जा ४९६*१. अनुरक्त महिला इस प्रकार बताई जाती है जिसके साथ सम्बन्ध (प्रेम) होता है, उसका नाम बार-बार लेती है और मित्रों से उसे पूछती है ।। १ ।।
४९६*२. जो रति से सन्तुष्ट नहीं हुई थी, उस व्यभिचारिणी ने गाँव के बीच में छकड़े को देखकर सोचा' कि जिसमें धुरा निहित रहता है, वह चक्रनाभि (पहिये का वह छिद्र जिसमें धुरा लगाया जाता है) धन्य है ॥२॥
४९६*३. उस व्यभिचारिणी ने बाल्यकाल में बालकों से, युवावस्था में युवकों से, वृद्धावस्था में वृद्धों से और मर जाने पर भी पिशाचों से रमण किया ॥३॥
४९६*४. मृत जार (उपपति) की चिता पर सती हो जाने का निश्चय करने वाली व्यभिचारिणी अपना पाप नष्ट कर रही है-भगवन् अग्निदेव ! मैंने जो अपने पति के साथ रमण किया था, वह मेरा एकमात्र दुष्कर्म क्षमा कर दें ॥४॥
४९६*५. संकेत-कुंज में उड़ते हुए विहंगों का कोलाहल सुनती हुई, गृहकार्य में लगी बहू के अंग टूटने लगे ॥ ५ ॥
१. मूल प्राकृत में यहाँ कोई क्रिया नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org