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वज्जालग
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२८४*३. कहाँ वक्रोक्ति-पूर्ण वचन और कहाँ आधी आँखों से देखना ? विदग्धों से भरे गाँव में साँस लेने पर लोग जान लेते हैं ॥ ३॥
२८४*४. अनुनय में समर्थ, परिहास से पेशल (मनोहर) और वैदग्ध्य-पूर्ण उक्तियों से सुशोभित संभाषण ही चतुरों के लिये वशीकरण है । अन्य मूलों (जड़ियों) से क्या प्रयोजन ? ॥ ४ ॥
२८४*५. वे धन्य हैं, उन्हें नमस्कार है, वे कुशल हैं, उनके ऊपर कामदेव की कृपा है, जो बालाओं, तरुणियों और वृद्धाओं के द्वारा हृदय में धारण किये जाते हैं ।। ५ ॥
*२८४*६. उन (विदग्धों) से वक्र व्यवहार नहीं किया जा सकता, वे जिसकी (उनके प्रति) सेवा होती है, उसे विशेषतः जानते हैं। बेटी ! विदग्धजन देवताओं के समान सच्चे प्रेम से ही वशीभूत होते हैं ।। ६॥
२८४*७. यद्यपि पहले दी जा चुकी है अर्थात् श्रेष्ठ मान लिया गया है फिर भी उस कृष्ण को विदग्धता में उच्च श्रेणी (कोटि) प्रदान करो, जो हृदय में लक्ष्मी को रख कर भी गोपियों के समूह से रमण करते हैं ॥७॥
२८४*८. पुत्रि ! छेकों के समक्ष वक्र वचन मत बोलो, वे हृदय में जो रहता है उसे भी बुद्धि से जान लेते हैं ॥ ८॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में देखिये।
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