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________________ वज्जालग्ग २९१ साहसवज्जा ११९*१. धन क्षीण हो जाने पर भी दान, व्यसन (संकट) में भी मान, मरने पर भी धैर्य और सैकड़ों कार्यों में भी मोह-ग्रस्त न होना-ये धीर-पुरुषों के आभूषण हैं ॥ १ ॥ ११९*२. धीर पुरुष मर कर भी अपना निश्चित कार्य सिद्ध कर लेते हैं, देखो भस्म हो जाने पर भी कामदेव ने शिव का आधा शरीर हर लिया ॥२॥ ११९*३. जैसे-जैसे विधाता विषमताओं को उत्पन्न करके निष्ठुरता पूर्वक नगाड़ा बजाता है, वैसे-वैसे धीर पुरुष प्रफुल्ल मुख से नाचते रहते हैं ॥ ३ ॥ सेवयवज्जा *१६१*१. राजन् ! बिना माँगे मिलता नहीं और माँगने पर तुम क्रुद्ध हो जाते हो। हाय ! धिक्कार है, जब यमराज के घर जाओगे, तब वहाँ की यातना तुमसे कैसे सहो जायगी ।। १ ।। सुहडवज्जा १७८*१. स्वामी के सम्मान से उत्पन्न होने वाला चिर-काल-संचित दुःख (यह सोच कर कि मैं इतने अधिक सम्मान का पात्र नहीं हूँ)-शत्रु के हाथियों के दाँतों के धंसने से होने वाले विवरों से बह गया ॥१॥ १७८*२. रक्त-पंक से लिप्त होने पर भी वह रणांगण में गिरा नहीं, भयभीत इन्द्र ने (कहीं स्वर्ग में आकर उपद्रव न करे) अमृत से सींचकर जीवित कर दिया ॥ २॥ . * विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में देखिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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