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( ix )
कयकम्म वज्जा क्या अर्थ तक ही सीमित है, हमें सत्कर्म करने की प्रेरणा नहीं देती ? चन्दन, वट, ताल और पलाश से सम्बद्ध वज्जाओं के वाच्यार्थ की पहुँच अर्थ तक है, तो क्या उनका व्यंग्यार्थ किसी धार्मिक तत्त्व की ओर इंगित नहीं करता है ? समुद्दणिदा को गाथायें क्या अर्थ का ही पाठ पढ़ा कर चुप हो जाती हैं ? कार्पण्य की निन्दा क्या उदारता, परोपकार और दान की शिक्षा नहीं देती ? हम उन्हें केवल अर्थ की संकुचित सीमा में बन्द कर क्या साहित्यिक अन्याय नहीं करते हैं ? इसी प्रकार अन्य वज्जाओं में भी विभिन्न पुरुषार्थों का प्रतिपादन परस्पर अनुस्यूत है, प्रत्येक को पृथक् करना असंभव है' ।
वज्जालग्ग का वैशिष्ट्य :
सम्पूर्ण ग्रंथ ९५ वज्जाओं में ( प्रकरणों में) विभक्त है, जिनमें केवल प्राकृत केप्रथित एवं लोकप्रिय छन्द गाहा (गाथा) का प्रयोग किया गया है । इस छन्द के प्रथम चरण में बारह, द्वितीय में अठ्ठारह, तृतीय में बारह और चतुर्थ में पन्द्रह मात्रायें होती हैं । प्रारम्भ में श्रुतदेवी को प्रणाम कर सुभाषित संग्रह के प्रयोजन के साथ प्राकृत काव्य का माधुर्य और शृंगारपेशलत्व प्रतिपादित करते हुए यह बताया गया है कि ग्रंथ का नाम वज्जालग्ग है । इसके अनन्तर वज्जालग्ग का अर्थ और उसके पारायण से मिलने वाले फल का संक्षिप्त वर्णन है । प्रारंभ की दो वज्जाओं ( गाहावज्जा और काव्ववज्जा ) में काव्य से सम्बन्धित कुछ मान्यताओं के संकेत हैं, जिन्हें संभवतः ध्यान में रखकर ही गाथाओं का संग्रह किया गया होगा ।
काव्य रचना कष्टसाध्य होती है, उसका पाठ करना भी सरल कार्य नहीं है परन्तु उसके मर्मज्ञ श्रोता सबसे दुर्लभ हैं । जब सहृदय श्रोता उपलब्ध हो जाते हैं तब किसी भी भाषा का काव्य अपूर्व रस देने लगता है (६, ७) । क्लिष्टत्व काव्य का प्रमुख दोष है, उसके रहने पर अलंकार, लक्षण और १. प्रो० पटवर्धन ने जोइसिय, विज्ज, धम्मिय, वेस्सा और हिमाली वज्जाओं को काम के वर्ग में रखा है और सुहड, दीण, नीइ, दुज्जण, दारिद्द, सेवय, किविण, पुण्वकयकम्म, चंदण, वडताल, पलास और समुद्दणिदा वज्जाओं को अर्थ के वर्ग में । ( वज्जालग्ग की भूमिका) ।
२. पढमे वारह मत्ता वीए अट्ठारहेहि संजुत्ता ।
जह पढमं तह तीयं दहपंच विहूसिआ गाहा ॥ - प्राकृत पैंगल
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