SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( vii ) होती हैं।' बाल-कित्ती और धण वज्जाओं का पता नहीं है। मानसंवरण, बालसंवरण और बालसिक्खा को सन्दिग्धरूप से हिययसंवरण बालासंवरण और कुट्टिणोसिक्खा के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। शेष वज्जायें, जो गाहादार में उल्लिखित नहीं हैं, वे या तो नई जोड़ो गई हैं या विभिन्न वज्जाओं के विभाजन से बनी हैं। जैन विद्वान् के द्वारा संगृहीत होने पर भी वज्जालग्ग में जैनधर्म के संकेत नगण्य हैं । अधिकतर गाथाओं में हिन्दू पुराणों के ही सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं । शिव, ब्रह्मा, विष्णु, लक्ष्मी, पार्वती, गरुड, क्षीरसागर कृष्ण, राधा प्रभृति नाम और सागरमंथन, रासलीला, बलिबन्धन अरिष्टासुरमर्दन आदि घटनाओं की चर्चा है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ग्रन्थ की सम्पूर्ण सामग्री का चयन केवल जैनेतर साहित्य से किया गया है। संग्रहकार ने सुभाषित शब्द का प्रयोग जिस व्यापक अर्थ में किया है, उसकी परिधि में रसपेशल काव्य भी आ जाते हैं। मैं समझता हूँ, सच्चे अर्थों में जिन्हें सुभाषित कहा जा सकता है वे उपदेश और नीति से सम्बन्धित पद्य तो अधिकतर जैन साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों से लिए होंगे और रस, अलंकार एवं ध्वनि से युक्त शृंगारिक गाथायें जैनेतर ग्रन्थों से चुनी गई होंगी। साहित्य को जिन कृतियों का आलोडन कर इस मनोरम गाथाकोष का प्रणयन किया गया है उनमें प्रबन्ध काव्य भी हो सकते हैं और मुक्तक भी। साथ ही साथ बहुत से सामयिक कवियों की सुन्दर रचनाओं को भी संकलित किया गया होगा। उन आधारभूत ग्रन्थों में कुछ आज उपलब्ध भी हो सकते हैं और कुछ संभवतः काल कवलित भी हो चुके होंगे । अतः कौन सी गाथा किस कवि की है, इस का पूर्णतया पता लगाना असंभव है । हाल-संगृहीत गाथा-सत्तसई की ८३ गाथायें वज्जालग्ग में पाई जाती हैं। उनका विस्तृत विवरण प्रो० पटवर्धन को अंग्रेजी भूमिका में दिया गया है परन्तु यह निश्चित नहीं है कि उक्त गाथाएं गाहासत्तसई से ही संगृहीत हुई हैं। संग्रह का प्रयोजन __ मंगलाचरण की गाथा से पता चलता है कि ग्रन्थकार का लक्ष्य इस ग्रन्थ के माध्यम से धर्म, अर्थ और काम की शिक्षा देना था। विद्वानों ने विभिन्न १. संभवतः अतिरिक्त गाथाओं में विद्यमान बाला सिलोय वज्जा ही बाल-कित्ती है जो किसी कारण अपने स्थान से च्युत हो गई है। बाल-कित्ती और बाला सिलोय-दोनों शब्द समानार्थक हैं। २. देखिये, प्राकृत ग्रन्थ परिषद् से प्रकाशित बज्जालग्न में प्रो० पटवर्धन की अंग्रेजी भूमिका । ३. धम्माइतिवग्गजुयं सुयणाण सुहासियं वोच्छं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy