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रचना हो तो वज्जालग का रचनाकाल ११२३ ई० और १३३६ ई० के मध्य माना जा सकता है। ग्रन्थ की अपभ्रंशबहला भाषा भी इसी तथ्य की पुष्टि करती है। वज्जालग्ग का परिमाण
वज्जालग्ग विभिन्न कवियों की मनोरम रचनाओं का संग्रह है, जिसमें अधिकांश गाथायें मूलतः मुक्तक हैं और कुछ प्रबन्धों, आख्यायिकाओं और चरितकाव्यों से संग्रहीत की गई प्रतीत होती हैं। हाल की सत्तसई में प्रत्येक गाथा के साथ कवि का नाम भी दिया गया था परन्तु इसमें कवियों के नाम नहीं हैं। रत्नदेव कृत संस्कृत टीका में स्थित 'गाहादार' (गाथा-द्वार) की अन्तिम गाथा में वज्जालग्ग को 'सत्तसइय' बताया गया है। इससे पता चलता है कि प्रारम्भ में इस ग्रन्थ में केवल सात सौ गाथायें रहीं होंगी। कालान्तर में इसकी कलेवर बृद्धि होती गई । परिणामत: गाथाओं की संख्या पर्याप्त बढ़ गई और वज्जाओं की संख्या भी लगभग दूनी हो गई। इस समय इस में ७९५ गाथायें और ९५ वन्जायें पाई जाती हैं । गाहादार में मूल वज्जाओं (प्रकरणों) का उल्लेख इस प्रकार है
गाहाण कव्वाण सज्जण पिसुणाण नीइ-धीराणं । सइ-असइ-घरणि-नेहाण छेय-जंतीण मुसलाणं ।। धम्मिय-वेज्ज-निमित्तिय-वेसाण सेवयाण सुहडाणं । हरि-मयण-सुरय हिययालियाण वाहाण नयणाणं ।। सिहिणाणं ओलग्गावियाण दुईण धन्नससयाणं । पंचम-वियोग-पिम्माण माण-माण-संवरणयाणं । मालइ-भमर-गयाणं करहय लायण्ण-बालकित्तीणं । दइयाणुरायबालसंठवण-बाल-सिक्खाणं पंथिय-हंसघणाणं वसंतयाण य सत्तसइयंमि । एवं अट्ठालीसा हवंति वज्जाउ नायव्वा ।
-आठवीं गाथा की टोका इसके अनुसार मूल ग्रन्थ मे ४८ वज्जायें और सात सौ गाथायें ही थीं। बर्तमान संस्करण की उपयुक्त ७९५ गाथाओं में विभिन्न प्रतियों की अतिरिक्त गाथाओं को भी मिला देने पर यह संख्या बढ़ कर ९९६ हो जाती हैं । गाहादार में वर्णित ४८ वज्जाओं में ४३ वज्जायें वर्तमान संस्करण में स्पष्टतया उपलब्ध
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