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वज्जालग्ग
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६१८.
व्याध श्रेष्ठ गजेन्द्र को केवल एक बाण से मार डालता है और बाण को धोकर वही पानी पी जाता है । जानते हो, ऐसा वह क्यों करता है ? ॥ ८ ॥
( कहीं कोई यह न समझ ले कि मेरा बाण विष मैंने गजराज का वध अपने पराक्रम से किया है, नहीं । यदि उसमें विष होता तो मैं धोकर पाता जीवित हो कैसे रहता ? )
६१९. शय्या पर परिपूर्ण पयोधरा कुरंगाक्षी ने उस पति का जिस्ने कुंकुम का अंगराग लगाया था-- आलिंगन नहीं किया । बताओ उसने ऐसा किसलिये किया ? ॥ ९ ॥
( कुंकुम का अंगराग भी हम दोनों के बीच रहने पर स्पर्श-सुख का बाधक' है, यह सोचकर नायिका ने आलिंगन नहीं किया)
में डुबोया हुआ था । विष को सहायता से क्यों ? और पीकर
६२०. अरे, तुमने उसके साथ कैसा रमण किया है कि जाँघों पर महावर लगे पैरों के चिह्न हैं, चरणों में कज्जल लगा है और पीठ पर तिलकों की पंक्तियाँ पड़ी हैं ? ॥ १० ॥
( इन चिह्नों से नायक का रति के सभी आसनों में नैपुण्य सूचित होता है) ६२१. बताओ, नायिका ने अभिनव प्रेम, समागम, यौवन, समृद्धि और वसन्त मास के रहने पर भी प्रवासो होने वाले पति का शिर क्यों देखा ? ॥। ११ ॥
(इन दुर्लभ पदार्थों के रहने पर भी यह परदेश जाना चाहता है । अतएव सचमुच बैल है । कहीं सींग तो नहीं निकल आई है - यह सोच कर उसका शिर देखने लगी )
६२२. जब देवर ने कहा कि तलवार लेकर राज- कुल में जाओ, तब मुग्धमुखी भाभी ने हँसकर सेज की ओर क्यों देखा ? ॥ १२ ॥ ( जब देवर ने भाभी से कहा कि मेरे भाई के स्थान पर राज सेवा के लिये तुम जाओ, तब उसने सोचा कि शायद देवर ने सेज पर अंकित लाक्षारस-रंजित चरणों के लांछन देखकर गत रात्रि में होने वाली मेरी विपरीत रति को ताड़ लिया है। अतः उसका अभिप्राय है कि तुम रात में मेरे भाई का काम करती हो, तो दिन में भी करो । भाभी के शय्या की ओर देखने का यही रहस्य है)
१. साध करि हार गले ना परिनू आमि । हार पाछे रन रधुमनि ॥
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- बंगकवि कृतिवास
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