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वज्जालग्ग
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६१३. यदि सखियों ने कह दिया कि तुम्हारा मुख पूर्णचन्द्र के समान है तो भोले मुख वालो सुन्दरी हाथ से कपोल क्यों पोछ रही है ॥ ३ ॥
नायिका ने समझा कि कहीं मेरे कपोलों में धब्बा तो नहीं पड़ा है, अन्यथा वह कलंकी चन्द्रमा के समान कैसे हो सकता है ? )
६१४. बहू तोनों की निन्दा कर रही है (या तीनों पर क्रोध कर रही है ) — आँखों से पति की, स्तनों से पूज्य ब्राह्मण की और नितम्बों से गुरुजन की । किसलिये ? हम नहीं जानते ॥ ४ ॥
( लज्जाशील पति नवागता वधू के निकट देर तक नहीं ठहरता, अतः उसे देर तक जी भर देखने के लिए तरसती आँखों से उसकी निन्दा करती है । स्थूल स्तनों के द्वारा वक्षःस्थल निरद्ध हो जाने के कारण नमस्कार सूचित करने के लिये भी थोड़ा सा सिर नहीं झुका सकती, अतः ब्राह्मण की निन्दा करती है । नितम्बों के भारी होने के कारण गुरुजनों की सेवा में विलम्ब हो जाता था, अतः उनकी भी निन्दा करती है)
६१५. यदि पति ने कहा कि लाओ, मैं तुम्हारे तिलक रच दूँ, तो वह मुग्धा क्यों हँस कर पराङ्मुख हो गई ? ।। ५ ।।
( ऋतुमती नायिका ने समझा कि तिलक के व्याज से कहीं प्रिय मेरा मुख न चूम लें । अतः उसने पराङ्मुख होकर अपना रुधिराक्त वस्त्र दिखला दिया)
६१६. जब हृदय पर प्रहार करने के लिये क्रोधपूर्वक चरण उठाया तब पति ने प्रार्थना की— मेरे सिर पर मारो। उस समय 'मैंने जैसा समझा था मेरा पति वैसा ही है'- यह कहती हुई वह मनस्विनी बड़े-बड़े आँसू गिराती हुई रो पड़ी ॥ ६ ॥
( नायिका ने समझ लिया कि अवश्य इसके हृदय में कोई अन्य प्रिया बसी है, जिसे बचाने के लिये मेरे चरण- प्रहार को सिर पर झेलना चाहता है)
६१७. प्रौढ़ महिला ने उस युवक को परिजनों के बीच में देख कर खिली हुई पंखड़ियों वाले कमल को हाथ से मुकुलित क्यों कर दिया ? || ७ ||
( वह सबके समक्ष अपने प्रेमी से कुछ नहीं कह सकती थी । अतः उसने कमल को मुकुलित करके यह संकेत किया कि सूर्यास्त होने पर तुम आ जाना)
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