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वज्जालन्ग
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५२६. वह पुजारी चंगेरी लेकर, व्यस्त होकर दूसरे के पिछवाड़े भटक रहा है । धतूरे से उस का प्रेम है। निश्चित है, एक भी नहीं छोड़ेगा ।। ५ ।। शृङ्गार पक्ष-हाथ में अण्डकोष पकड़े वह कार्यरत पुजारी दूसरे के पिछवाड़े चक्कर काट रहा है । उसे धूर्तारत प्रेम है। निःसन्देह एक को नहीं छोड़ेगा।
५२७. देखो, पिछवाड़े स्थित सुलभ धतूरों को छोड़ कर वह पुजारी कुरबकों के लिये किस प्रकार वन में भटक रहा है ॥ ६ ॥ शृङ्गार पक्ष-सुलभ धूर्तारत को छोड़ कर कुरत के लिये भटक रहा है।
__५२८. पुजारी ! यदि बहुत से कचनार, करवीर (कनेर) और धतूरों के साथ देव मन्दिर (देहरा एवं देहरत) की इच्छा करते हो, तो मेरे घर आ जाओ ।। ७ ।।
५२९. वह धूर्त साधु धतूरा न पाकर मन्दार, कुरबक और शृंगारक (भंगरैया) को छोड़ रहा है और हाथ में चंगेरी लिये भटक रहा है ।। ८॥ शृङ्गार पक्ष--धूर्तारत को न पाकर मन्दारत, कुरत और भंगरत (अधूरी रति-क्रिया या पटसन के खेत में होने वाली रति) को छोड़ रहा है और अण्डकोष को धारण करता हुआ भटक रहा है।
५३०. जिनके अग्र-भाग विकसित हैं, जिनके वर्ण उज्ज्वल हैं और जिनमें मकरन्द प्रकट हो चुका है, वे धतूरे बिना पुण्य के नहीं मिलते ।।९।। शृङ्गार पक्ष-जिन के मुख खिले रहते हैं, जिनकी कान्ति निर्मल है और जिनमें शृंगार रस (या आनन्द) प्रकट हो चुका है, उन धूर्ताओं का रत पुण्य के बिना नहीं प्राप्त होता है।
५३१. पुजारी ! शिवलिंग के ऊपर लगे हुये (संलग्न या रखे हुये) एक ही धतूरे से जो सुख प्राप्त होता है, वह करोड़ों मन्दारों से नहीं ॥१०॥
(लिंग से संलग्न एक ही धूर्ता के रत से जो सुख मिलता है, वह कोटि मन्दा-स्त्रियों के रत से नहीं)
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