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________________ वज्जालग्ग १७९ *५२०. बालातन्त्र को छोड़कर, तरुण वैद्य के द्वारा यह तरुणी अभिमंत्रित सर्षपों (सरसों) से नहीं मारी जा रही है (अर्थात् जिस उपाय से यह स्वस्थ हो सकती है, वह नहीं किया जा रहा है) ।। १० ।। ___ *५२१. हे वैद्य ! मुझे अन्न नहीं रुचता, मेरा हृदय प्यास से भरा है। इस मलिन (धूलि भरे) और प्रस्वेद से आर्द्र शरीर में तुम्हारी भभूत (या आयुर्वेदिक भस्म) का पता नहीं लगता ।। ११ ।।। शृङ्गार पक्ष-अन्य कोई वस्तु रुचती ही नहीं, मेरा हृदय प्रिय की चाह से भरा है । प्रणय के प्रवेग से आर्द्र अंग (योनि) में तुम्हारा मैथुन रुचता है। ५४-धम्मिय-वज्जा (धार्मिक-पद्धति) ५२२. जो पुजारी कुरबक, मन्दार और मुद्गर (मोगरा) नहीं पाता, वह चंगेरी लेकर कहाँ धतूरा ही पायेगा ।। १ ।। शृङ्गार पक्ष-जो कुरत (पृथ्वी पर की जाने वाली रति-क्रीड़ा), मन्दारत (स्वैरिणी या दुर्बल स्त्री से रमण) और मुग्धारत (मुग्धा स्त्री से रमण) नहीं पाता, वह भला भारी अंडकोष' धारण करने वाला पुजारी धरित (धर्ता या विदग्धा स्त्री के साथ रमण) कैसे प्राप्त करेगा? __५२३. हे पुजारी ! यदि धतूरे से लिंग (शिवलिंग) को परिपूर्ण (आच्छादित) करना चाहते हो, तो सूर्य अस्त हो जाने पर मेरे पिछवाड़े आना ॥२॥ (यदि धूर्तारत के द्वारा अपने लिंग को आच्छादित करना चाहते हो तो सूर्य डूब जाने पर मेरे पिछवाड़े आना) __ *५२४. अरे पुजारी ! धतूरे के लिये घर के पीछे के गंभीर भागों में भटकते हुये तुम केवल कुरबकों (पुष्प विशेष) के सुन्दर वर्ण से भी वंचित रह जाओगे ॥३॥ शृङ्गार पक्ष-धूर्तारत के लिए कुरत (बिना शय्या के नंगी पृथ्वी पर की जाने वाली कुत्सित रति) के आनन्द से भी वंचित रह जाओगे। ५२५. वह पुजारी धतूरे के लिये दूसरे के पिछवाड़े चक्कर काटता है। अन्य लोगों द्वारा बरबाद किये जाते हए अपने उद्यान को नहीं देखता ॥४॥ शृङ्गार पक्ष-धूर्तारत के चक्कर में दूसरी जगह भटकता है, दूसरों द्वारा उपभुक्त अपनी पत्नी को नहीं देखता। १. हाथ में अण्डकोष पकड़े हुए--संस्कृत टीका * विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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