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________________ १२९ ३७६. उनके बिना आज ही ये रक्त, श्वेत और कृष्ण आंखें जात्यन्ध मौक्तिक के समान दिशाओं में लुढ़क रही हैं ( जात्यन्ध मौक्तिकों को कोई नहीं पूछता है ) || ३ ॥ वज्जालग्ग ३७७. आज चले गये, आज चले गये, वे आज चले गये - इस प्रकार लिखने वाली नायिका ने ( वियोग के) पहले आधे दिन में ही सम्पूर्ण भित्ति रेखाओं से चित्रित कर डाली ॥ ४ ॥ ३७८. जब नायिका प्रियतम के आगमन के दिन की गणना कर के दीवार पर रेखायें खीचती थी, तब उसकी सखियां, 'अवधि का दिन कहीं आ न जाय' - इस आशका से दो-तीन रेखायें छिप कर पोंछ देती थीं (यदि कहीं अवधि का दिन आ जायगा तो यह हर्षातिरेक से ही मर जायगी अथवा सखियां समझती थीं कि नायक निश्चित समय पर नहीं लौट पायेगा | अवधि का दिन कहीं आ न जाय और यह मर न जाय, इसलिये चुपके से दो-तीन रेखायें पोंछ दिया करती थीं) ॥ ५ ॥ ३७९. प्रियतम कब गये ? पुत्रि ! आज । कितने दिनों का आज होता है ? एक । अरे इतना बड़ा एक दिन होता है—यह कह कर वह बाला मूच्छित हो गई || ६ || ३८०. जैसे फूटी सीपी का एक भाग दूसरे भाग से फिर नहीं जुड़ सकता वैसे ही कभी-कभी विरहणियां जब जीवित रह जाती हैं, तब उन का प्रेमी कुछ ऐसे कुमुहूर्त में लौटता है, जब मेल नहीं होता ॥ ७ ॥ ३८१. अरे ! मन्दर के समान विरह ने क्षीर सागर के समान हमारे हृदय को मथ कर रत्नों के समान सुखों को निकाल लिया' ॥ ८ ॥ १ मह हिययं रयणनिहि, महियं गुरुमंदरेण तं णिच्चं । उम्मूलियं असेसं, सुहरयणं कड्ढियं च तुह पिम् ॥ Jain Education International प्रेम अमि मन्दरु विरह, भरत पयोधि गम्भीर | मथि काढेउ सुरसन्त हित, कृपासिंधु रघुवीर ॥ — सन्देश रासक, For Private & Personal Use Only ११९ - रामचरितमानस, अयोध्याकाण्ड, दो० २३८ www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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