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मान्य सुनाओ पथिक यदि गणयति पड़े जिस से न मुझे समझाना । धूर्तारत से प्रेम मंदसणेहओ इव
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पत्ते
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२३७
२४४ २४७
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मार्गयः सुनओ पथिकः गणयति जिस से न पड़े मुझे समझाना। धूर्तारत प्रेम मंदह णेहओ इत पत्त असोलसवासो समान शुक्रानां (अच्छाईयाँ वधितकोशं (उतर) प्रशंसतः नमक का लक्षण से त्वदमुधे उठता क्लिश्यमनो मग प्रिया कोमल प्रवसधृ जिस का मा रोदिहि मालाइदल को (अवञ्चित) पुजीभूत (आवइपाले) चक्खिडं
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असोलसंवासो समाप्त पुंशुकानां अच्छाइयाँ वधितकोशो (इतर) प्रशंसत नमक, लक्षणा से त्वमुदधे उठाता क्लिश्यमानो मम प्रिया के कोमल प्रवस धृष्ट जिस की मा रुदिहि मालइदल
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प
३२२ ३२३
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३३४
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३४३
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३५० ३५३ ३५८ ३६०
(अवाञ्चित) पुंजीभूत (आवइयाले) चक्खिउं
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