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________________ ३६० ३६१ ३६२ ३७३ ३७५ ३७७ ३८० ३८७ ३८८ ४०२ ४०४ '४०५ ४०६ मरण । पूर्ववर्तिचेष्टासाम्य मरण पूर्ववति चेष्टा साम्य अभीष्ट अनिष्ट हो ही जाती ? हो ही जाती है ? तरुणीचल्लोचन तरुणीचलल्लोचन तादृश तादृशं संश्लेषोऽत संलग्नाता संश्लेषोऽत्र संलग्नता कदम देवता दिशा दशा निराकांक्ष साकांक्ष रयणेणा रयणेण उसिऊण डसिऊण हे मूर्खः हे मूर्ख द्वारा विहीन द्वारा रोटी के अर्थ रोटी के पक्ष में अर्थ , मुट्ठइ संवहइ मुट्ठीइ संवहइ (विध्यायाति) (विध्यायति) टिप्पणी में पता नहीं कि टिप्पणी में लिखा है कि (भंगुरता) (भंगुरता) द्वारा २६,२७ ४०८ ४०९ ४१३ २६ ४१४ सुलभ ४१६ ४२१ ४२२ ४२३ ४२५ मानें तो वह सुलभ वादी वाटी नपुसकम् नपुंसकम् वेश्याहृदय वेश्याहृदयम् कामविकाराच्छेदकम् कामविकारोच्छेदकम् तृप्त्याभाव तृप्त्यभाव पाणय पणय अत्थो अणं अत्थो धणं स्तभात् स्तस्मात् याद यदि चतुर्थ = चरण निविष्ट चतुर्थ चरण निविष्ट ४५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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