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________________ वज्जालग्ग १०३ २९८. नेत्र चार प्रकार के होते हैं-प्रियों के लिये वक्र, सज्जनों के लिये सरल, मध्यस्थ के लिये ऋजु और शत्रुओं के लिये रक्त ।। ८ ॥ २९९. उन नयनों पर वज्र पड़े अथवा वज्र से भी अधिक कुछ पड़े, जो अपरिचित जनों को भी देखकर अनुरक्त हो जाते हैं ॥ ९ ॥ ३००. उसने लोगों की भीड़ में भी मेरी आँखों को नचा दिया। वे रोकने पर भी उसके सम्मुख दौड़ पड़ी और उसके मुड़ने पर मुड़ गई।॥ १० ॥ ३३--थण-वज्जा (स्तन-पद्धति) ३०१. (ये) स्तन खलों के हृदय के समान कठोर हैं, मित्रों से सेवित (संगत) सज्जन के समान एक दूसरे से सटे (संगत = मिले) हैं, राजन्य मंडल के मध्य-स्थित (मंडलित) राजा के समान गोल (मंडलित) हैं और दरिद्र की चिन्ता के समान हृदय (मन और छाती) में नहीं समाते हैं ॥१॥ ३०२. *जिन में दुग्ध-रन्ध्र नहीं हैं, वे कुटिलाकृति स्तन, अभद्र मुख एवं कुटिल व्यवहार वाले खल के समान हैं। उनका मध्यांश कृपणों के दान के समान है और वे वक्षःस्थल में यों नहीं समा रहे हैं, जैसे सत्पुरुषों के मनोरथ उनके मन में नहीं समाते ॥ २॥ ३०३. ये स्तन, जैसे तुलादण्ड सम (सीधा) रहता है वैसे ही सम (बराबर आकार वाले) हैं, जैसे सज्जन संगत (मित्रों के साथ) रहते हैं वैसी ही संगत (परस्पर सटे हुये) हैं, जैसे उन्नत पुरुष अस्खलित (अपराध रहित) रहता है वैसे ही अस्खलित (पतनरहित) हैं, जैसे सज्जन शस्त-भाव (अच्छे विचार या स्वभाव वाला) होता है वैसे ही शस्त-भाव (प्रशंसनीय रूप या स्वस्थ अवस्था वाले = स्वस्थ-भाव) हैं और जैसे सुभट समुत्थित (युद्धार्थ उद्यत) रहते हैं वैसे ही समुत्थित (उठे हुये) रहते हैं ॥ ३ ॥ *विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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