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________________ वज्जालग्ग २३८. एक्कं महुयरहिययं तं चिय पुण मालईइ पडिरुद्धं । सेसा फुल्लंतु फलंतु पायवा को निवारेइ ॥ ३ ॥ एक मधुकरहृदयं तदेव पुनर्मालत्या प्रतिरुद्धम् । शेषाः पुष्पन्तु फलन्तु पादपाः को निवारयति । २३९. मालइ पुणो वि मालइ हा मालइ मालइ त्ति जंपतो। उव्विग्गो भमइ अली हिंडतो सयलवणराई ॥ ४ ॥ मालति पुनरपि मालति हा मालति मालतीति जल्पन् । उद्विग्नो भ्रमत्यलिहिण्डमानः सकलवनराजीः ।। २४०. *रुणरुणइ वलइ वेल्लइ पक्खउडं धुणइ खिवइ अंगाइं । मालइकलियाविरहे पंचावत्थं गओ भमरो ॥ ५ ॥ रुणरुणायते वलति वेल्लति वक्षपुटं धुनोति क्षिपत्यङ्गानि । मालतीकलिकाविरहे पञ्चावस्थां गतो भ्रमरः ।। २४१. *मालइविरहे रे तरुणभसल मा रुवसु निब्भरुक्कंठं । वल्लहविओयदुक्खं मरणेण विणा न वीसरइ ।। ६ ।। मालतीविरहे रे तरुणभ्रमर मा रोदीनिर्भरोत्कण्ठनम् । वल्लभवियोगदुःखं मरणेन विना न विस्मयते ।। २४२. जाव न वियसइसरसा वरइ न ईसं पि मालईकलिया । अविणीयमहुयरेहिं ताव च्चिय पाउमारद्धा ॥ ७ ॥ यावन्न विकसति सरसा वृणोति नेशमपि मालतीकलिका। अविनीतमधुकरैस्तावदेव पातुमारब्धा ॥ २४३. वियसंतसरसतामरसभसल वियसेइ मालई जाव । ता जत्थ व तत्थ व जह व तह व दियहा गमिज्जंति ॥८॥ विकसत्सरसतामरसभ्रमर विकसति मालती यावत् । तावद्यत्र वा तत्र वा यथा वा तथा वा दिवसा गम्यन्ते ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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