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वज्जालग्ग
१९८. गजराज प्रिया के वियोग में यूथ से निकल कर वन को, वन से सरोवर को, सरोवर से गिरिशिखर को और गिरिशिखर से पुनः पृथ्वी को देखता है ॥९॥
१९९. यदि गजराज करिणी की रॉड से अर्पित सरस सल्लकी के भोजन को स्मरण कर मर नहीं जाता, तो क्या दुर्बल भी न हो ? ॥ १० ॥
२१-सोह-वज्जा (सिंह-पद्धति) २००. मृगी व्यवसाय (पुरुषार्थ) और मान से रहित बहुत से पुत्रों से क्या कर लेती है ? सिंहनो एक हो गजवटा-विदारक पुत्र से सूखपूर्वक सोती है ।। १॥
२०१. अहा ! इस जीवलोक में जो जन्मना विशुद्ध हैं, उन मृगेन्द्रों को नमस्कार है, उन के कुल में जो-जो उत्पन्न हुए; वे सभी गजराजों के कुम्भों को विदीर्ण करने वाले थे ॥ २ ॥
२०२. बड़े होने से (ही) पुरुषों में शौर्य आता है-यह मत समझो । सिंह-शावक छोटा होने पर भी श्रेष्ठ गजों का कुम्भस्थल विदोर्ण कर डालता है ॥ ३॥
२०३. गज और सिंह-दोनों ही वन में उत्पन्न होते हैं। (परन्तु), गजों को लोग बाँध लेते हैं, सिंह को नहीं। धीर-पुरुषों का मरण हो सकता है, अपमान नहीं ।। ४ ।।
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