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वज्जालग्ग
९६. साहसी धीर पुरुषों की दो गतियाँ होती हैं-हाथ में सुन्दर (या कोमल) कमल को धारण करने वाली लक्ष्मी की प्राप्ति अथवा प्रव्रज्या ॥६॥
९७. धीर पुरुष भारी कष्ट (दुःख) से प्रेरित होने पर (या पीडित होने पर) अपनी जिह्वा काट कर मर भले ही जाय परन्तु खलों के आगे जाकर दीन वाणी नहीं बोलता है ॥ ७॥
९८. (धीर पुरुष) या तो प्रिया का आलिंगन कर उन्नत एवं स्थूल उरोजों के फलक पर शयन करता है या नर-कपालों और कंकालों से भरे भयानक श्मशान में ॥ ८ ॥
९९. धीर पुरुष या तो सुन्दर कामिनियों के साथ कच्चोलों (प्यालों), थालियों और शुक्तिपात्रों में भोजन करता है या भिक्षा माँग कर प्रेतवन (श्मशान) में उज्ज्वल नरकपाल में (भोजन करता है) ॥९॥
१००. खलों के चरणों में प्रणत हो कर यदि तीनों लोकों की संपत्ति अजित कर ली जाय, तो उससे क्या ? सम्मान से यदि तृण भी अजित हो, तो वह सुख देता है ॥ १० ॥
__१०१. जो गुरुव्यसन (दारुण दुःख) से पीडित होने पर भी अन्य से याचना नहीं करते, वे उद्योग में स्थिर रहने वाले, गौरवशाली और स्वाभिमानी पुरुष धन्य हैं, उन्हें नमस्कार है ॥ ११ ॥
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