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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ३ पर्दिना रुदिते ।। ४९ ।।
रुदित शब्दमें, दि अवयवके साथ त-वर्गका ण होता है । (सूत्रके गर में) र् इत् होनेसे, (ण का) द्वित्व होता है। उदा.-रुण्णं। इसी 'स्थानपर कोई वैयाकरण 'ऋत्वादिषु तो दः' इस (नियम) का प्रारंभ करते हैं; किंतु यह नियम शौरसेनी और मागधी भाषाओंके संबंधही दिखाई देता है; इसलिए यहाँ वह नियम नहीं कहा गया है। प्राकृतमें मात्रऋतुः उऊ । रजतम् रअ। एतत् एअं। गतः गओ। आगतः आगओ। सांप्रतम् संप। यतः जओ। ततः तओ। कृतम् क। हतम् हों। हताशः हआसो। श्रुतः सुओ। सुकृती सुकिई । निवृतिः णिव्वुई। तातः ताओ। कातरः काअरो। द्वितीयः दुईओ, इत्यादि प्रयोग होते हैं। कचित् (भिन्न विकार उपलब्ध होते हैं तो वे) 'तद्वयत्ययश्च' (३.४.६९) सूत्रानुसार सिद्ध होते हैं ।। ४९॥
णो वातिमुक्तके ॥ ५० ॥
अतिमुक्तक शब्दमें त-बर्गका ण विकल्पसे होता है। उदा.अणिवेत्तअं अइउत्तरं अइमुत्तरं ।। ५० ।।
गर्भिते ।। ५१ ॥
___(इस सूत्रमें १.३.५० से) णः पदकी अनुवृत्ति है। गर्भित शब्दमें त-वर्गका ण होता है। (१.३.५० से) यह नियम पृथक् कहा जानेसे, (यह ण) नित्य होता है । उदा.-गब्मिणो ॥५१॥
नः॥ ५२ ।।
असंयुक्त (अस्तोः), अनादि (अखोः), स्वरके आगे आनेवाले नकारका णकार होता है। उदा.-कनकम् कण। धनम् धणं । मानयति माणइ ।। ५२ ।।
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