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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
आदेस्तु ॥ ५३ ॥
(इस सूत्रमें १.३.५२ से) नः पदकी अनुवृत्ति है । शब्दोंके आध नकारका ण विकल्पसे होता है । उदा.-नदी गई नई। नयति णेइ नेइ। (आध न) असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णविकार होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-न्यायः नाओ ॥ ५३ ॥ नापिते ण्हः ॥ ५४ ॥
___ नापित शब्दमें नकारको ग्रह ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-हाविओ णाविओ नाविओ ।। ५४ ॥ पो वः ।। ५५ ।। असंयुक्त, अनादि, स्वरके आगे होनेवाले पकारका वकार प्रायः होता है । उदा.-शपथः सवहो । शापः सावो । उपसर्गः उवसग्गो। प्रदीपः पईवो। पापम् पावं । उपमा उत्रमा। कपिलः कविलो । कुणपम् कुणवं । कलापः कलावो। कपालम् कवालं । महीपालः महीवालो। गोपायति गोवाअइ । तपति तवइ । असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-विप्रः विप्पो। अनादि रहनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं ।) उदा.-पडइ पतति । पढइ पठति । स्वरके आगे होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-कंपइ कम्पते । (पकारका वकार) प्रायःही होता है (इसलिए कभी होता भी नहीं ।) उदा.-कपिः कई । रिपुः रिऊ । इसलिए पकारका लोप और वकार इन दोनोंका संभव जहँ। है वहाँ जिसके करनेसे श्रुतिसुख होगा, वह (वर्णविकार) करे ॥ ५५॥ फः पाटिपरिघपरिखापरुषपनसपारिभद्रेषु ।। ५६ ।।
(इस सूत्रमें १.३.५५ से) पः पदकी अनुवृत्ति है। प्रेरणार्थक प्रत्ययान्त (णिजन्त) पट (पटि) धातुमें, तथा परिघ, इत्यादि शब्दोंमें, पका फ होता है। उदा.-पाटयति फालेइ फाडे। परिघः फलिहो। परिखा फलिहा । परुषः फरसो। पनसः फणसो । फनस शब्द संस्कृतभी है, ऐसा कोई कहते हैं। पारिभद्रः फालिहद्दो ॥ ५६ ।।
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