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________________ ५२ अद्रुमे कदल्याम् || ४३ ॥ वृक्ष अर्थ न होनेपर, कदली शब्द में तु (त-वर्ग) का र होता है । उदा.-करली। वृक्ष अर्थ न होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण वृक्ष अर्थ होनेपर, र नहीं होता ।) उदा. - कअली केली ॥ ४३ ॥ त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण कदर्थिते खोर्वः ॥ ४४॥ कदर्थित शब्दमें खु यानी आद्य (ऐसे ) त वर्गका व होता है । उदा. - कबट्टिओ ॥ ४४ ॥ पीते ले वा ।। ४५ ॥ ( इस सूत्र में १.३.४४ से) वः पद (अध्याहृत ) है । पीत शब्द में स्वार्थिक (स्वार्थे) लकार आनेपर, तु (त-वर्ग) का वकार होता है । उदा.पीवलं पीअलं । स्वार्थिक लकार आनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण स्वार्थे लकार न आवे तो यह वर्णान्तर नहीं होता ।) उदा. - पीओ ॥ ४५ ॥ डो दीपि ॥ ४६ ॥ दीप्यति धातुमें त वर्गका डकार विकल्पसे होता है । उदा. - डिप्पर दिप्पइ ।। ४६ ।। - ढः पृथिव्यैाषधनिशीथे ॥ ४७ ॥ (पृथिवी, औषध, निशीथ ) इन शब्दों में त वर्गका ढ विकल्पसे होता है । उदा.- पुढवी पुहवी । ओसढं ओसहं । णिसीढो णिसीहो ॥ ४७ ॥ प्रथमशिथिलमेथिशिथिरनिषधेषु ।। ४८ ।। Jain Education International (इस सूत्र में १.३.४७ से) ढः पद (अध्याहृत) है | प्रथम, इत्याद शब्दों में तु (त-वर्ग) का ढ होता है । (१.३.४७ से ) यह नियम पृथक् कहा जानेसे, (यह ढ) नित्य होता है । उदा. - पढमं पुढमं । सिढिल सढिलं | मेढी । सिढिरो । णिसढो ।। ४८॥ I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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