SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ३ टल् त्रसरवृन्ततूबरतगरे ।। ३७ ॥ त्रसर, वृन्त, तबर, तगर) इन शब्दोंमें त-वर्गका टकार होता है। (सूत्रके टल में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-टसरो। वेण्टं । तालवेण्टं । टूबरो तूबरः (यानी) शंगरहित बैल या श्मश्रुर हित पुरुष । टगरो तगरः (अर्थात् ) औषधि विशेष अथवा वृक्षविशेष ॥ ३७ ।। हः कातरककुद विस्तिमातुलिङ्गे ॥ ३८ ।। (कातर, ककुद, वितस्ति, मातुलिंग) इन शब्दोंमें त-वर्गका ह होता है। उदा.-काहलो। कउहं । विहत्थी। माहुलिंग। किंतु मातुलुंग शब्दका (वर्णान्तर) माउलुंगं (ऐसा होता है) ॥ ३८ ॥ तु वसतिभरते ॥ ३९ ॥ (वसति और भरत) इन शब्दोंमें त-वर्गका ह विकल्पसे होता है । उदा.-वसही वसई । भरहो भरओ ।। ३९ ।। लः पलितनिम्बकदम्बे ॥ ४० ॥ . (पलित, निम्ब, कदम्ब) इन शब्दोंमें त-वर्गका ल विकल्पसे होता है। उदा.-पलिलं पलि। लिम्बो णिम्बो। कलंबो कअंबो ॥ ४० ॥ दोहदप्रदीपशातवाहनातस्याम् ॥ ४१ ॥ दोहद, प्र (उपसर्ग) पूर्वक दीप्यति धातु, शातवाहन और अतसी इन शब्दोंमें त-वर्गका ल होता है । यह नियम (१.३.४० से) पृथक् कहा जानेसे, (यह वर्णान्तर) नित्य होता है। उदा.-दोहलो। पलीवेइ । पलित्त । सालवाहणो सालाहणो । अलसी ॥ ४१ ।। रल सप्तत्यादौ ।। ४२ ।। सप्तति, इत्यादि शब्दोंमें त-वर्गका र होता है। (सूत्रके रल में) ल इत् होनेसे, (यह र) नित्य होता है। उदा.-सप्ततिः सत्तरी। सप्तदश सत्तरह। एकादश एआरह । द्वादश बारह । त्रयोदश तेरह । पञ्चदश 'पण्णरह । अष्टादश अट्ठारह । गद्गदम् गग्गरं । 'इत्यादि ।। ४२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy